पति-पत्नी की desi suhagrat

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ये हिन्दी कहानी पति-पत्नी की desi suhagrat की ऐसी कहानी है जो सुहागरात की रात में हुए अंर्तवासना के सभी हसीन पलों का भरपूर आनंद दिलाती है।

हिन्दी कहानी desi suhagrat, वीरेन्द्र उर्फ वीरू की शादी एक ऐसी लड़की से हुई थी, जो पहले से खेली खाई थी।

वीरेन्द्र दिल्ली का रहने वाला था और वह साईन बोर्ड स्क्रीन प्रिटिंग का काम करता था।

हालांकि आज के जमाने में पेन्टर यानी आर्टिस्ट का महत्व बहुत कम हो गया है।

किसी जमाने में हाथ से लिखने वाले साईन बोर्ड पेन्टरों या आर्टिस्टों का बहुत महत्व हुआ करता था।

वीरेन्द्र उर्फ वीरू के पिता ने अपने बेटे को यानी वीरू को ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं करवाई थी।

वीरेन्द्र के पिता सूरजपाल अपने जमाने के बड़े नामवर आर्टिस्ट थे।

सन् 1988 से 2002 तक सूरजपाल ने पेन्टर तथा साईन बोर्ड के बिजनेस में खूब नाम कमाया था।

सूरजपाल ने सन् 1989 में कई सिनेमा घरों के पोस्टरों को बनाया था

और उन पोस्टरों पर नये-नये आयामों में, अंदाजों में फिल्मों के शीर्षकों के नाम लिखा करते थे।

उन दिनों सूरजपाल का नाम बड़ा प्रसिद्ध था।

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लोग सूरजपाल से मिलने के लिए आते थे

और उन्हीं से साईन बोर्ड बनवाते थे या फिल्मी पोस्टर बनवाते थे।

आजकल तो यह धंधा भी बंद-सा हो गया है।

सूरजपाल के पास इतना काम था, कि वह अपनी पत्नी को ज्यादा समय ही नहीं दे पाता था

शायद इसी वजह से उसके घर में एक ही औलाद पैदा हुई थी जिसका नाम रखा गया था वीरू उर्फ वीरेन्द्र।

वीरू के पैदा होने के बाद भी सूरज को पैसे कमाने का भूत सवार रहता था,

इसलिए सूरज को यह पता तक नहीं चला, कि कब उसका इकलौता बेटा 23-24 साल का जवान हो गया है।

दरअसल सूरजपाल ने अपनी जवानी पैसा कमाने में गंवा दी थी

और उसकी पत्नी उन दिनों बेहद प्यासी रहती थी।

पर इंसान अपनी प्यास बुझाने के लिए कोई न कोई रास्ता खोज ही लेता है,

ठीक एक कौए की तरह,

जिसने घड़े में कंकड़ डाल कर पानी का लेबल ऊंचा उठा कर अपनी प्यास बुझा ली थी।

यानी एक तरफ बेटा जवान हो गया, तो दूसरी तरफ बाप पैसा कमा-कमा कर थक गया और बूढ़ा हो गया।

एक दिन वीरू की मां ने अपने पति सूरज से वीरू की शादी की बात की, तो वीरू के पिता चैंके, “अरे!

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क्या बात कर रही है? वीरू इतना जवान हो गया है, मुझे तो पता ही नहीं चला।“

“आपको काम से फुर्सत मिले तब न।“ बीवी नाराजगी भरे स्वर में बोली,

“केवल पैसा कमाने में ही अपनी जवानी व जिन्दगी गुजार दी आपने।

न तुम्हारी जवानी मेरे लिए काम आई और जिन्दगी न मेरे बेटे के लिए।

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अपना सर्वस्व जीवन आपने अपने काम को समपर्ण कर दिया, हमारी ओर से रूख ही मोड़ लिया।“

अपनी पत्नी नाराजगी देखकर सूरज को एकबारगी अपनी गलती का एहसास हुआ,

मगर दूसरे ही पल संयत होकर बोला, “अच्छा ठीक है, कल ही मैं उसकी शादी का कोई इंतजाम करता हूं।

पहले तो कुछ मेरा इंतजाम कर दे।“

“इंतजाम!“ पत्नी थोड़ी हैरानगी से बोली, “आपके लिए कैसा इंतजाम करूं?“

“अरे वही इंतजाम, जो तुम शादी के शुरूआती दिनों में यानी हमारे बेटे वीरू के पैदा होने से पहले मेरे लिये किया करती थीं।“

पत्नी को बांहों में लेते हुए बोला सूरज, “समझी या नहीं।“

“धत्।“ पत्नी इस उम्र में भी शरमा गई, “बेटे के ऐश करने के दिनों में बाप को मस्ती करने की सूझ रही है।

कुछ तो उम्र का लिहाज करो।“

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“ऐ! उम्र से क्या मतलब तेरा।“

पत्नी को मजबूती से बाहों में जकड़ कर बोला सूरज,

“तू मूड तो बना फिर देखना इस उम्र में तुझे पुनः पेट से न कर दिया

मैं भी असली मर्द नहीं“

“अरे न बाबा।“ पत्नी हौले से मुस्करा कर बोली,

“फिर तो मैं नहीं आने वाली तुम्हारी बातों में।

इस उम्र में पेट लेकर घूमूंगी, तो हमारे बेटे का दिमाग घूमने लगेगा,

यह सोचकर कि पिता व मां को देखो मेरी जवानी को नजरअंदाज करके स्वयं बुढ़ापे का लुत्फ उठा रहे हैं।“

“अरे कहा न उसका भी इंतजाम करवा दूंगा शादी का।“

बीवी के शरीर को सहलाते हुए बोला सूरज,

“अब जरा तू मुझे खुश कर दे। मेरा तो बहुत ज्यादा मूड बन गया है।“

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“ठीक है जैसा आप कहें।“

पत्नी भी पति के सीने से लगते हुए बोली,

“कर देती हूं आपको खुश।

मगर मेरे बेटे के लिए कोई सुंदर-सी सुशील लड़की ढूंढ कर तुम्हें भी मुझे खुश करना होगा।“

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“अरे हां मेरी जान।“

पत्नी को बिस्तर पर लेटाते हुए बोला सूरज,

“पहले जरा मैं तो खुश हो लूं अच्छे से।“

फिर क्या था, दोनों पति-पत्नी प्यार के खेल में रम गये और तब तक रमे रहे,

जब तक दोनों संतुष्ट नहीं हो गये।

फिर थोड़ा छानबीन व दौड़ा-भागी करके वीरू के पिता सूरजपाल ने छत्तीसगढ़ की एक सुंदर पर अनपढ़ लड़की से वीरू की शादी करके उसका रिश्ता जोड़ दिया।

शादी के मामले में लड़के को एक संुदर लड़की चाहिए होती है, जोकि वीरू को दिखा दी गई थी।

लड़की को देखते ही वीरू ने ‘हां’ कह दी थी।

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अब लड़की के चरित्र के विषय में तो बाद में पता चलता है। पहले पता लगाने की प्रक्रिया पूरे भारत में आज तक उपलब्ध नहीं हुई है।

वीरू के पिता यानी सूरजपाल ने यही सोचा था कि गांव की अनपढ़ खूबसूरत गंवार लड़की वीरू जैसे लड़के से शादी करके धन्य हो जायेगी

और वीरू भी एक कुंवारी लड़की का सानिध्य प्राप्त करके मस्त हो जायेगा।

पर जो इंसान सोचता है, वह होता नहीं।

इसीलिए एक कहावत बनाई गई है, कि इंसान के मन कुछ और, और खुदा के मन कुछ और।

वीरू की एक गांव की लड़की से शादी कर दी गई।

वीरू गांव की लड़की से शादी करने के बाद खुश हो गया। उसे लगा कि उसे जन्नत मिल गई है।

साथ ही वीरू के पिता को भी लगा था, कि गांव की अनपढ़ लड़की वीरू की जिन्दगी संवार देगी और उसे भरपूर प्यार देगी।

उसके घर-परिवार को संवार देगी।

जब सुहारात की बेला आई,

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तो वीरू के मन में कई प्रकार लड्डू फूट रहे थे।

वह अपनी नई नवेली खूबसूरत पत्नी का सानिध्य पाने के लिए मचला जा रहा था।

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हालांकि वीरू ने कभी इससे पहले किसी लड़की का सानिध्य प्राप्त नहीं किया था।

वह नीरा भोला लड़का था और अपने काम में लीन रहता था।

जब सुहागरात की बेला आई, तो वीरू ने अपनी तरफ से अपनी पत्नी को खुश करने के लिए भरपूर प्रेम प्रदर्शन किया। इस पर गांव की खेली खाई दुल्हन बोली,

“यह सब तो ठीक है, पर आप ये ‘कार्य’ अपने सभी वस्त्र अपने शरीर से जुदा करके करेंगे,

तो आपको भी और मुझे आनंद प्राप्त होगा।“

“अभी लो।“ पत्नी के आग्रह पर वीरू ने झट से अपने वस्त्र उतार दिये।

अब पत्नी के समक्ष वीरू पूर्ण निर्वस्त्र था।

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उसने पत्नी को भी ऐसा ही करने को कहा, तो बिना देर किये पत्नी भी उसी ‘अवस्था’ में आ गई।

”ये लो सैंया जी।” पत्नी भी निर्वस्त्र होने के बाद बोली,

”अब हम दोनों में वस्त्रों का कोई भेद नहीं रहा। तुम बेलिबास और तुम्हारी पत्नी भी..।

अब आगे क्या विचार है…?“

कहकर सुहागसेज पर पत्नी बेझिझक चित्त लेट गई और

पति की ओर अपनी गोरी बांहें फैलाती हुई बोली,

”आपकी दुल्हनियां आपके सामने है, वो भी उस ‘अवस्था’ में जिसे हर कोई मर्द मन ही मन देखने को तरसता रहता है और आंहें भरता रहता है।

आओ ने अब, क्या यूं ही देखते रहोगे दूर से?“

पति देव भी झट से अपनी निर्वस्त्र पत्नी की बगल में लेट गया और

उसकी निर्वस्त्र कोमल काया को ऊपर से नीचे तक ललचाई नजरों देखता हुआ बोला,

”तुम्हारी देह तो कमाल की है जानेमन।”

वह पत्नी की प्रेमनगरी में हाथ फिराता हुआ बोला,

”आज तो मेरे ‘साथी’ के मजे ही आ जायेंगे, जब वह तुम्हारी प्रेमनगरी की सैर करेगा।”

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”तो क्या अब मेरी प्रेमनगरी का दरवाजा ही ठोकते रहोगे या फिर अपने ‘साथी’ को प्रवेश करने के लिए भी कहोगे।”

वह प्यासी नजरों से पति की ओर देखकर बोली, ”देर न करो, करो न प्रवेश मेरी नगरी में।“

”अरे पहले जरा प्रेमनगरी के आस-पास की सजावट का मुआयना तो अच्छे से कर लूं, जानेबहार।”

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एकाएक पत्नी के दोनों कबूतरों को हथेलियों में पकड़ते हुए बोला, ”बड़े ही प्यारे कबूतर हैं, चोंच तो देखो इनकी कितनी सुर्ख है।”

पत्नी के होंठों के पास आता हुआ बोला पति, ”जरा इन्हें पुचकार तो लूं।”

कहकर पत्नी के कबूतरों को मुख दुलार देने लगा पति।

”ओह पतिदेव जरा प्यार से पुचकारो मेरे कोमल कबूतरों को।”

पति देव के बालों में अंगुलियां फिराते हुए बोली दुल्हन,

”कहीं इनकी चोंच को घायल न कर देना।

फिर प्यार का दाना कैसे चुगेंगे ये कबूतरें?”

फिर काफी देर तक दूल्हे मियां, अपनी दुल्हनियां के हुस्न रूपी घोंसले में बैठे दोनों कबूतरों को पुचकारते रहे।

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तभी पत्नी बोली,

”अजी अब बहुत हुआ। कब तक इनके साथ ही लगे रहोगे।

आपका साथी भी खाली बैठा बोर और बेजान हो रहा होगा।

जरा इसे हमारी पे्रमनगरी की सैर तो कराओ।”

फिर क्या था पति देव ने अपनी पत्नी के कहते ही अपने मजबूत ‘साथी’ को पत्नी की प्रेमनगरी में प्रवेश करवा दिया।

प्रेमनगरी वाकई बड़ी शानदार थी।

पति का साथी बेहद खुश होकर उछल-कूद करता रहा।

पत्नी भी रह-रहकर पति का बखूबी साथ दे रही थी।

पत्नी बहुत ज्यादा उत्तेजित होकर बड़बड़ाये जा रहा थी,

”आह…मोरे सैंया…ऐसे ही करते रहो ता ता थैया… मर ग्रई मैं तो हाय दैय्या।“

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मगर यह क्या…

दुल्हन अभी प्यार के समुंदर में किनारे तक भी नहीं पहुंची थी,

कि पतिदेव बीच मझधार में ही ढेर हो गये। उस वक्त वीरू को बड़ा अफसोस हुआ कि ये क्या हुआ?

वह पत्नि को संतुष्ट करना चाह रहा था,

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मगर पत्नी द्वारा पूर्ण सहयोग करने से उसे इतना आनंद प्राप्त हुआ कि वह जल्द ही पत्नि के पहलू में ढेर हो गया था।
इस तरह पहले दिन से ही वीरू,

पत्नी की नजर में यौनिक रूप से नकारा साबित हो गया था। उसके बाद तो हर रोज ही ऐसा होने लगा।

ऐसा नहीं था, कि

वीरू में कोई शारीरिक कमी थी या कमजोरी थी,

मगर खेली खाई दुल्हन के जोशीले प्यार के आगे वह जल्द ही ढेर हो जाता था।

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जब उसकी खूबसूरत पत्नी बेहद आक्रामक तरीके से स्वयं ही पहल करते हुए उसे यौनिक चैलेंज देती थी,

तो उसके इस मादक अंदाज में पतिदेव पहले ही आधे पिघल जाते थे

और जब पत्नी से मिलन का कार्य सम्पन्न होता था,

तो पत्नी जी गजब का साथ निभाती थी और पतिदेव ‘टांय-टांय फिस्स’ हो जाते थे।

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वीरू बहुतेरी कोशिश करता, कि आखिर वह पत्नी पर विजय प्राप्त कर सके यानी वह चाहे स्वयं अधूरा रह जाये,

मगर पत्नी की desi suhagrat प्यास अधूरी न रहे। इससे उसे बड़ी शर्मिन्दगी उठानी पड़ती थी।

वीरू अपने आप और पत्नी से बेहद परेशान था,

क्योंकि प्यासी रह जाने पर उसकी पत्नी उसे खूब खरी-खोटी सुनाती थी।

यहां तक कि उसे नामर्द तक कह देती थी।

एक दिन वीरू ने अपने एक शादीशुदा दोस्त से इस विषय में बात की और उसे अपनी आपबीती सुना दी।

तब दोस्त ने वीरू की आपबीती सुनने के बाद वीरू को बड़ी हैरत से देखा,

तो इस पर बीरू बोला, “ऐसे क्या देख रहा है बे तू?“

वीरू ने प्रश्न किया, तो उसका दोस्त बोला,

“यही देख रहा हूं, कि तू कितना बड़ा बेवकूफ है तुझे तेरी पत्नी बेवकूफ बना रही है जानबूझ कर तुझे नामर्द साबित कर रही है

और तू बकायदा बड़े प्यार से नामर्द साबित हो रहा है।“

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“क्या मतलब?“ वीरू ने पूछा।

इस पर उसका दोस्त बोला,

“तेरी पत्नी तुझे घन चक्कर बना रही है।

आज तू अपनी पत्नी के साथ जब मिलन करे,

तो गर्भनिरोधक वस्तू का इस्तेमाल करियो और हां, अपनी पत्नी को अपने शरीर पर बिल्कुल हाथ नहीं लगाने देना।

सीधे ही तू अपने कार्य सिद्धि पर लग जाना समझा।“

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“यार मुश्किल तो यही है न, कि वह सब कुछ अपने मनमुताबिक ही करती है बिस्तर पर।“

अपनी परेशानी बताता हुआ बोला वीरू,

“मैं किसी तरह उसके शरीर में सवार हो भी जाता हूं तो वह अपनी देह को इस तरह समेट लेती है कि मैं बीच में ही निढाल हो जाता हूं।“

“बस यहीं पर तू गलती करता है।“

दोस्त ने समझाया,

“तूने बस किसी भी तरह अपनी पत्नी के रोमांचक ‘दिल’ में प्रवेश पाना है वो भी पूरी तरह।

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वीरू ने अपने दोस्त का धन्यवाद अदा किया और उसे पार्टी भी दी। उसी रात वीरू ने अपने दोस्त द्वारा बताया पैंतरा आजमाया,

तो उस रात वीरू की दुल्हन को बड़ी हैरत हुई

उसे समझ में आ गया था कि

आज की रात उसका दूल्हा अपने किसी दोस्त यार से सबक सीखकर आया है।

उस वक्त वह चुप बनी रही और उस दौरान वीरू ने उसके रंगमहल के गलियारे में घुड़-सवारी की और अंततः अपने प्रेम का पैमाना वहां तक पहुंचा दिया,

जहां प्रेम के पैमाने को पहुंचने में बेहद खुशी हासिल होती है।

जब पति अपनी पत्नी को छका कर अपनी तृप्ति कर चुका, तो पत्नी ने दूसरी चाल चलने की तैयारी कर ली।

वह पति को पुनः मिलन करने के लिए उकसाने लगी। इस पति झल्ला कर बोला, “अभी-अभी तो पेट भरा है, इतनी जल्दी भूख कैसे लगेगी?“

“आपने तो एक कहावत तो सुनी होगी न कि एक मर्द को घोड़े की तरह होना चाहिए चुस्त व दुरूस्त।

मर्द को घोडे़े के समान ही रफ्तार पकड़ते हुए पत्नी से मिलना चाहिए।“ पत्नी बोली।

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वीरू कुछ सोचने लगा, फिर थोड़ी देर बाद बोला,

“तो तुझे घोड़े की तरह के शक्तिशाली मर्द पसंद हैं और मैं उन मर्दों की तरह का नहीं हूं।

बाई द वे तूने कितने इस तरह के मर्दों को टेस्ट किया है,

जो तुझे इस तरह के घोड़ा छाप मर्दों की पहचान हो गई?“

“बेकार में मेरी बातों का गलत अर्थ निकालने की चेष्टा न करो।“

पत्नी मुंह बनाते हुए बोली, “मैं तो बस यही चाहती हूं, कि तुम थोड़ा और वक्त मेरे साथ प्यार करते वक्त गुजारा करो।“

इसके बाद वीरू की पत्नी पलंग से उठकर बाथरूम में चली गई और अच्छे सेे अपने शरीर को साफ करके फ्रेश हो गई।

फिर अपने कमरे में आकर सो गई। उस रात वीरू ने दोबारा अपनी पत्नी को हाथ तक नहीं लगाया।

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सारी रात वीरू करवट फेर कर सोचता रहा, कि उसे पत्नी के मुताबिक घोड़ा-छाप मर्द कौन बना सकता है?

और घोड़ा-छाप मर्द किस प्रकार के होते हैं

इस विषय में भी वह मन ही मन सारी रात मनन करता रहा।

सुबह वीरू फिर से अपने दोस्त के पास चला गया

और उसे सारी कहानी बता दी। वीरू का दोस्त भी बड़ा फन्ने खां था। वह वीरू को लेकर एक तांत्रिक के पास पहुंचा और उसे सब बातें पूरी तरह बता दी।

तांत्रिक बाबा बोले,

“बेटे ऐसा करना तुम इस शनिवार को यहां आ जाना। तुम्हें घोड़ा-छाप मर्द बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हो जायेगी।“

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इसके बाद तांत्रिक ने दोनों को विदा कर दिया। शनिवार के दिन दोनों दोस्त फिर से तांत्रिक बाबा के पास पहुंचे,

तो तांत्रिक बाबा ने पटुआ(सन) के बीज वीरू के हाथ में रखे और कोई मंत्र पढ़ा।

फिर वीरू को निर्देश दे दिया,

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“किसी घोड़े के बाथरूम में इन बीजों को 24 घण्टें तक डुबोकर रखो, फिर ये बीज मेरे पास लेकर आना।“

वीरू को यह काम जरा मुश्किल लगा, पर उसके दोस्त ने कहा कि वह इस काम में उसकी मदद करेगा।

वाकई दोस्त ने मदद की और वहां पहुंच गया, जहां शादी ब्याह के लिए घोड़े-घोड़ियां बंधी होती थीं।

वहां वीरू के दोस्त ने अस्तबल के चैकीदार को 1000 रुपए देकर घोड़े का मूत्र लेने की बात कही तो चैकीदार तैयार हो गया।

चैकीदार ने घोड़े का मूत्र एक बड़ी-सी प्लास्टिक की बाल्टी में भरकर उसे सुरक्षित कर लिया था और अगले दिन वह मूत्र वीरू तथा उसके दोस्त को सौंप दिया था।

बदले में वीरू ने उस चैकीदार को 500 रुपए और दे दिये थे

चैकीदार यानी अस्तबल का नौकर खुश हो गया था।

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शनिवार के दिन फिर वीरू तथा उसका दोस्त उस तांत्रिक बाबा के पास पहंुचे।

उस समय वीरू के पास सन के बीज थे, जो घोड़े के मूत्र में 24 घण्टे तक डुबोकर रखे गये थे। तांत्रिक ने उन बीजों को सूंघा और वीरू को आगे की प्रक्रिया बता दी।

उसने बताया “इन बीजों को एक शीशे पर रखकर, शनिवार की रात को दक्षिण की ओर मुख करके काले कम्बल का आसन बिछा कर उस पर बैठें और हर रोज 108 मंत्रों का जाप करें।“

मंत्र भी तांत्रिक बाबा ने बता दिया था।

बाबा मंत्र बताते हुए कहा, “यह मंत्र जाप करते हुए दीवार पर एक आदमकद आईना लगा लेना। आईने का बीच का भाग यानी साधक की दृष्टि के बिल्कुल सामने हो।

उस आईने में देखते हुए मंत्र पढ़ते जाने हैं और यह तमन्ना मन में लगातार रखनी है कि साधक यानी मंत्र जाप करने वाले की छवि उसे नज़र आ रही है

बल्कि साधक या मंत्र जाप करने वाले की जगह एक घोड़े की छवि उस शीशे में नज़र आ रही है।

मंत्र पढ़ते हुए यही कल्पना करनी है, कि साधक की जगह एक घोड़े की आकृति उस शीशे में नज़र आ रही है

और जब आईने में वाकई 108 मंत्र हर रोज पढ़ते हुए आपको आईने में घोड़े की तस्वीर नज़र आने लगे, तब ये बीज मेरे पास ले आना समझे बच्चा।“

तांत्रिक ने सभी रहस्य बता दिये, तो वीरू तन-मन से उस तांत्रिक अनुष्ठान को पूरा करने में जुट गया।

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21 दिनों के बाद वीरू को वाकई शीशे में अपनी छवि दिखाई देनी बंद हो गई और उसकी जगह एक घोड़े की छवि दिखाई देने लगी,

तो वह 22वे दिन फिर से तांत्रिक बाबा के पास पहुंचा

और उन घोड़ों के मूत्र में भीगे पटुआ यानी सन के बीजों को उनके सामने रख दिया।

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उन पटुआ के बीजों को तांत्रिक बाबा ने फिर से अभिमंत्रित किया और वीरू तथा उसके दोस्त को निर्देश दिया,

“अब इन बीजों को उसी घोड़े के सिर पर बांध कर 24 घण्टों तक बंधा ही रहने दे फिर मेरे पास लेकर आ जाना।“

वीरू तथा उसके दोस्त ने फिर से उस अस्तबल के चैकीदार से सम्पर्क किया और 1000 रुपए उसे देकर अपना मन्तव्य सिद्ध कर लिया।

एक काले कपडे़ में उन बीजों को बांध कर घोड़े के सिर पर चैकीदार की मदद से बांधा गया और 24 घण्टों बाद उन्हें घोड़े के सिर से खोलकर फिर से तांत्रिक बाबा के पास ले जाया गया।

उसके बाद तांत्रिक बाबा ने उन सन यानी पटुआ के बीजों को अपने सामने एक पटरे के आसन पर रखवाया,

जिस पर काला रेशम का आसन बिछा था।

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तांत्रिक ने मन ही मन गुप्त मंत्र पढ़ा और उस बीजों को वीरू को सौंपते हुए कहा,

“घर जाकर इन बीजों को सामने रखकर 108 मंत्रों का जाप करके ऐसी जगह पर बो देना, जहां किसी का पैर न पड़े और उस जगह पर छाया रहे। यानी सूर्य की धूप सीधे तौर पर न पड़े।

जब पटुआ का कोई पौधा वहां निकल आये और जब पौधा बड़ा हो जाये,

तो उस पटुआ यानी सन के पौधे को तोड़ कर एक रस्सी बना लेना।

उस रस्सी को 108 मंत्र जाप करके अपनी कमर पर या सिर पर बांध लेना, तुम्हारा कार्य पूर्ण हो जायेगा।“

प्रक्रिया काफी लंबी थी, पर वीरू को वह सब कुछ करना ही था,

इसलिए तांत्रिक बाबा के कहे अनुसार ही वीरू ने काम किया। उस दौरान वह अपनी पत्नी के पास संसर्ग के इरादे से कभी नहीं गया था।

वीरू की इन हरकतों से उसकी दुल्हन काफी परेशान थी,

क्योंकि वह वीरू को नकारा या नामर्द साबित करके अपने पूर्व प्रेमियों से संबंध जोड़ना चाहती थी या फिर उनके साथ ही मौज-मस्ती करना चाहती थी।

लेकिन कई दिनों तक जब वीरू ने अपनी पत्नी को अपने से दूर रखा, तो उसकी पत्नी के मन में विचित्र शंकायें उत्पन्न होने लगी थी।

आखिरकार तीन महीने बाद ही सही, वीरू के गमले में सन के पौधे निकल आये।

उन पौधों को वीरू हर रोज उक्त मंत्र पढ़ते हुए पानी देता रहा और जब सन के पौधे बड़े हो गये,

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तब उनमे से एक पौधे को वीरू ने 100 मंत्र पढ़ते हुए उस सन के पौधे को तोड़ लिया और उसके रेशों से रस्सी बनाकर उक्त मंत्र से उस रस्सी को अभिमंत्रित करते हुए अपने सिर पर बांध ली।

इस पूरे प्रकरण के दौरान वीरू ने अपनी दुल्हन को छुआ तक नहीं था।

वह उससे दूर ही रहता था और रात को दस बजे वह मंत्र जाप करने चला जाता था।

वीरू के इस तरह के आचरण से उसकी दुल्हन काफी परेशान थी।

पर वह कुछ नहीं कर पा रही थी, क्योंकि रात दिन उसकी सास उसका ख्याल रखने लगी थी। जो दुल्हन चाहती थी, वह हो नहीं पा रहा था।

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एक रात जब अपने सिर पर अभिमंत्रित पटुआ की रस्सी बांध कर अचानक 10 बजे वीरू अपनी दुल्हन के सामने पहुंचा,

तो उसकी दुल्हन पहले तो भयभीत हुई, फिर पहले वाले पैंतरे अजमाने लगी…

“बड़े दिनों बाद मेरी याद आई।“

दुल्हन बोली तो वीरू ने जवाब दिया, “बडे़ दिनों बाद ही सही, आज अपनी desi suhagrat में मैं तुम्हें घोड़ा छाप मर्द बनकर दिखाऊंगा।

अब तक मैं तुम्हारे काबिल नहीं था न, इसलिए तुम्हारे पास नहीं आया। आज देखना तुम्हें कैसा प्यार दिखाता हूं।“

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“अच्छा।“ दुल्हन ने मजाकिये अंदाज में कहा, “क्या वाकई तुम दो-तीन महीने मुझसे अलग रहकर घोड़ा-छाप मर्द बन गये हो?“ वह हौले से मुस्करा कर बोली, “अभी पता चल जायेगा।“

“क्यों नहीं।“ वीरू ने कहा और कमरे की बत्ती जला दी।

फिर वीरू ने अपनी दुल्हन की आंखों में देखते हुए 21 बार वही मंत्र पढ़ा

और अपनी दुल्हन के वस्त्र उतारने लगा…

“लाईट तो बुझा दो।“ दुल्हन ने प्रार्थना की।

इस पर वीरू बोला, “लाईट जलती रहने दो और जो तुम मेरे साथ करना चाहती हो, वह करो।“

वीरू की यौनिक ललकार को स्वीकार करके उसकी दुल्हन पहले जैसा बर्ताव करने लगी

तो वीरू ने अपने मन में फिर से वही मंत्र पढ़ा और अपनी दुल्हन की आंखों में देखते हुए मंत्र पढ़ते हुए अपनी दुल्हन के पहलू में जा समाया।

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जैसे ही वीरू अपनी दुल्हन के पहलू में समाहित हुआ,

उसी वक्त वीरू ने फिर से अपनी दुल्हन की आंखों में देखते हुए उक्त मंत्र का मन ही मन 21 बार पाठ किया और मन ही मन सोचा कि वह घोड़ा बन गया है

घोड़े के समान ही शरीर हो गया है उसका।

उसी वक्त उसकी दुल्हन घुटी-घुटी आवाज में चीखने लगी, “उई मम्मी मर गई, कोई मुझे बचाओ। मुझ पर घोड़े ने आक्रमण कर दिया है।

हाय रे मैं तो मर जाऊंगी आज।“

लेकिन वीरू रूका नहीं। वह सरपट दौड़ लगाते हुए घोडे़ की तरह हिनहिना रहा था

और उसकी दुल्हन desi suhagrat में मारे भय के कांपे जा रही थी।

करीब 10 मिनट बाद वीरू ने अपने सिर से वह रस्सी खोलकर अपने हाथ में पकड़ ली और फिर से अपनी दुल्हन की अंाखों में देखकर कहा,

“अब मुझे देखो, मैं घोड़ा नहीं, बल्कि तुम्हारा पति हूं।“

यह कहते ही दुल्हन को घोड़े की जगह अपना पति दिखाई देने लगा।

वह हांफते हुए बोली, “आप कहां चले गये थे? अभी थोड़ी देर पहले मुझे आपकी जगह घोड़ा दिखाई दे रहा था। वह मुझे बुरी तरह से रौंद रहा था।“

वीरू ने जवाब दिया, “क्यों तुम्हें तो घोड़ा छाप मर्द पसंद थे न? फिर तुम उस घोड़ा छाप मर्द से भयभीत क्यों हो गई?“

“नहीं… नहीं…।“

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दुल्हन भयभीत अंदाज में बोली, “मुझे अब घोड़ा छाप मर्द फूटी आंख नहीं सुहाते।

आप मेरे साथ रहें, कहीं ऐसा न हो, कि फिर से वह घोड़ा मेरे सामने आ जाये।“

“ठीक है।“ वीरू अपनी दुल्हन को संसर्ग सुख देते हुए बोला, “मुझसे प्यार करती हो या नहीं?

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“हां करती हूं।“ पत्नी बोली।

“फिर तो अपनी चालाकियां नहीं दिखाओगी?“

“नहीं दिखाऊंगी बाबा।“ पत्नी ने हाथ जोड़कर बोली।

उसी वक्त वीरू ने फिर से अपने सिर पर वही रस्सी बांध ली और पुनः घोड़ा बनकर हिनहिनाने लगा।

उस दौरान वीरू संसर्ग भी किये जा रहा था।

shukra king
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इस कौतूक की वजह से फिर से उसकी दुल्हन अपने हाथ-पैर पटकते हुए छटपटाने लगी,

“घोड़ा आ गया, कोई मुझे बचाओ। स्वामी आप कहां चले गये? जल्दी आओ। ये घोड़ा मुझे बुरी तरह रौंद रहा है।“

उसी वक्त वीरू ने फिर से अपने सिर से वह रस्सी हटा दी

उसने अपनी दुल्हन से पूछा, “क्यों, अब कैसा लग रहा है?“

दुल्हन भयभीत अंदाज में बोली, “आप फिर कहां चले गये थे? अभी थोड़ी देर पहले फिर से घोड़ा मेरे सम्मुख आ गया था।“

“तुम झूठ बोल रही हो, मैं ही तुम्हारे साथ था और अब भी तुम्हारे साथ ही हूं।“

कहकर वीरू तेजी से संसर्ग क्रिया को अंजाम देने लगा, तो दुल्हन बोल पड़ी, “अब बस करो सैंया।

बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मुक्त करो ने मुझे, शरीर में पीड़ा उत्पन्न होने लगी है।“

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वीरू फिर भी अपनी दुल्हन के शरीर से नहीं हटा और भरपूर पैंतरे दिखाने लगा।

दुल्हन की हालत पतली हो गई। वह रोने लगी और वीरू से प्रार्थना करने लगी,

“अब हट जाओ, मेरा मन रो रहा है। मैं कब की टूट चुकी हूं।“

अपनी दुल्हन की प्रार्थना से वीरू का दिल पसीज गया और उसने जल्दी से अपना ‘कार्य’ पूर्ण कर लिया और पत्नी के शरीर से सिमट कर शांत हो गया।

दुल्हन की सांस में सांस आई। वह पति की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली, “आप बड़े अच्छे हैं।

अपनी desi suhagrat में मुझे आज से आपसे दिल से प्यार हो गया है।“

“आईन्दा अपने दिल में किसी और मर्द के बारे में सोचना भी मत।“

वीरू ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, “वरना फिर से तुम्हें घोड़ा दिखाई देने लगेगा।“

“अरे मेरे बाप की तौबा!

“ हाथ जोड़कर कांपती आंखों से देखते हुए बोली पत्नी, “ऐसा कभी नहीं होगा।

मेरे दिल में आपके सिवाये कोई नहीं है।“

इसके बाद वीरू की दुल्हन के सिर से पराये मर्दों का भूत तथा

अपने प्रेमियों का भूत एकदम से उतर गया।

इस तरह वीरू अपनी दुल्हन को इतना भरपूर व जोशीला प्रदान करने लगा था, कि उसका मन किसी और पुरूष के विषय में कुछ भी नहीं सोचता था।

जाहिर है, जब पति से हर तरह का भरपूर प्यार मिले

तो कुलटा से कुलटा पत्नी भी अपने पति से दिल से प्यार करने लगती है।

कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।

peny king
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