एक कामुक अंर्तात्मा ने suhagrat कैसे सुहागरात मनाई और चरमसीमा तक भरपूर मजा लिया सेक्स गेम का.. जरूर पढ़ें ये हिन्दी कहानी और भरपूर मजा लें इस देसी कहानी का..
suhagrat hindi desi kahani में आप आगे पढ़ेंगे कि एक रोज दोनों फुर्सत के पलों में बैठे मंहगी शराब का लुत्फ ले रहे थे
राजेश सिंह और विमल कुमार आपस में गहरे मित्र थे और दोनों ही उच्च वर्ग के नामी व्यापारी थे दोनों के पास धन की कमी नहीं थी,
करोड़पति जो थे साथ ही दोनों को शतरंज खेलंने का बड़ा ही गहरा शौक था जब भी दोनों को व्यापार से फुर्सत मिलती तो एक-एक बाजी शंतरज की हो जाती थी
एक कामुक अंर्तात्मा की..
तभी राजेश बोला, ”यार हमारी दोस्ती का सफर बहुत ही अच्छा गुजरा।
अब हम दोनों की ही उम्र हो चुकी है। कभी-कभी लगता है मौत जब मुझे लेने आयेगी, तो…।“
”ऐसा मत बोल यार।“ विमल बीच में ही बोला, ”तेरे सिवाये इस उम्र में मेरे साथ उठने-बैठने वाला कौन है?
भले ही मैं करोड़ों का मालिक हूं और तू भी राजेशों के मामले में मुझसे कम नहीं है।
तेरे भी बच्चे हैं और मेरे भी बच्चे हैं, पर हम दोनों के ही बच्चे एक-दूसरे से अन्जान हैं तेरी भी उम्र हो गई है और मेरी भी उम्र 70 के करीब पहुंच गई है।
हमारे बच्चे अपनी-अपनी जिन्दगी में मस्त हैं और हम दोनों बुजुर्ग अपने तरीके की जिन्दगी में मस्त हैं। उम्र होने के साथ ही दुनियां बुजुर्गों का भूलने लगती है।“
अपने जिगरी यार विमल की बातें सुनकर राजेश भी भावुक हो गया,
”अबे मेरे निर्दयी व्यापारी दोस्त, तू कबसे इतना भाुवक होने लगा।“
”जबसे मैंने अपना जनाजा सपने में देखा है।“ विमल बोला,
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”पता नहीं कब इस शरीर के चोले को छोड़ने का आॅर्डर उस ऊपर वाले की ओर से आ जाये।“
”अबे छोड़ न, ऐसी मनहूस बातें मत कर।“ राजेश बोला,
”चल यार, आज एक बाजी शतरंज की लगाते हैं।
यदि तू जीता, तो मेरी बेटी तेरे घर की बहू बनेगी और मैं जीता, तो तेरा इकलौता बेटा मेरा जमाई बनेगा।“
”यह सब तो ठीक है।“ विमल ने आंखें भींचते हुए कहा, ”चित भी तेरी और पट भी तेरी।“
”क्या मतलब।“ राजेश ने जानबूझ कर अन्जान बनते हुए कहा, ”ऐसा क्यों बोल रहा है तू?“
”अबे तेरी भी एक ही बेटी है और मेरा भी इकलौता बेटा ही है।“ विमल बात को समझाते हुए बोला,
”यदि शतरंज के खेल में मैं जीता, तब भी मुझे तेरी बेटी से अपने बेटे की शादी करनी पड़ेगी और यदि तू जीता,
तो भी मेरा बेटा तेरी ही बेटी से शादी करेगा।“
”हां, सो तो है।“ राजेश ने मुस्कराते हुए कहा, ”मंजूर हो, तो खेले शंतरज?“
”चल यार, बिछा बिसात।“ विमल भी प्रसन्न चित्त होकर बोला,
”देखते हैं कौन जीतता है। वैसे भी मुझे ये रिश्ता मंजूर है, चल शुरू कर।“
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दोनों लंगोटिया यार किशोरावस्था से ही शतरंज खेलते आ रहे थे और
उस दिन बाजी बड़ी रोचक थी। वह न केवल शतरंज की बाजी थी, बल्कि उन दोनों के रिश्तों में भी बंधने की कवायद थी।
दोनों शतरंज की बाजी खेलने बैठे, तो पहली चाल राजेश ने चली।
विमल ने भी राजेश की चाल का जवाब अपने ऊंट के आगे बैठे पायदे से चली।
विमल ने पायदे को दो कदम आगे बढ़ा दिया।
बदले में राजेश ने अपने दूसरे घोड़े को भी ढाई चाल से आगे बढ़ा दिया।
विमल ने हाथी के सामने बैठे पायदे को दो कदम आगे बढ़ा दिया।
यूं शतरंज का खेल आरम्भ हुआ, तो राजेश ने अपना ऊंट आगे बढ़ाकर वजीर आगे निकाल लिया और फिर ऐसे चालें चलता रहा कि विमल के पायदे तथा घोड़े मरते चले गये।
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बदले में विमल को पायदों को ही मारकर संतुष्ट करना पड़ा और अंत में राजेश ने विमल को चैक और मात दे दी।
विमल शतरंज की बाजी हार गया।
इस खेल को उस रोज विमल का बेटा भी छुपकर देख रहा था।
उसे मालूम हो गया था कि उसके पिता कौन-सी और कैसी बाजी खेल रहे हैं?
विमल के बेटे का नाम प्रशांत था और राजेश की बेटी का नाम मीनू था।
हालांकि दोनों आपस में एक-दूसरे को जानते थे, पर आपस में उनकी घनिष्ठता नहीं थी।
लेकिन जब विमल के बेटे प्रशांत को यकीन हो गया कि अब उसका तथा मीनू का विवाह संभव हो सकता है,
तो विमल के बेटे प्रशांत ने उसी दिन से राजेश की बेटी मीनू से घनिष्ठता बढ़ानी आरम्भ कर दी।
मीनू बेहद खूबसूरत थी, पर वह पहले प्रशांत से औपचारिक रूप से ही बातें किया करती थी।
एक दिन राजेश ने अपनी बेटी से साफतौर पर कह दिया,
”बेटी, अब तुम्हें हर हाल में प्रशांत से शादी करनी पड़ेगी। मैंने इस मामले में अपने दोस्त से वायदा कर लिया है।”
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”पर पापा।“ मीनू ने अपनी बात रखते हुए कहा,
”आप तो जानते ही हैं, कि मैं तो किसी दूसरे लड़के से प्यार करती हूं।
फिर मैं प्रशांत से कैसे शादी कर सकती हूं?“
”ये प्यार, प्रेम, इश्क सब बेकार की बातें होती हैं।“
राजेश अपनी बात पर अडिग होकर बोला, ”मैंने जो निर्णय ले लिया है, वही आखिरी निर्णय है।
प्रशांत एकदम सही पति साबित होगा तुम्हारे लिये। आखिरकार वह मेरे जिगरी दोस्त का बेटा है।”
बेटी इससे आगे विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि वह अपने पिता की प्रवृति से भली भांति वाकिफ थी।
दूसरी तरफ विमल ने भी अपने बेटे को भी साफतौर पर कह दिया था कि
वह उसकी शादी राजेश की बेटी मीनू से ही करेगा।
इस मामले में प्रशांत को कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि मन ही मन प्रशांत मीनू को पसंद भी करता था।
राजेश की बेटी मीनू को भी शतरंज का खेल पसंद था
और वह इस खेल की अच्छी खिलाड़ी थी, तो दूसरी तरफ विमल का बेटा भी शतरंज के खेल में कम नहीं था।
आखिर दोनों के पिता शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे।
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जब दोनों शादी करने के लिए राजी हो गये, तो दोनों की शादी करवाने से पहले
दोनों के पिताओं ने दोनों के बीच शतरंज का खेल करवाया।
मीनू तथा प्रशांत जब शतरंज खेलने लगे, तो दोनों के बीच आपसी प्रेम की भावना बढ़ने लगी।
पर हर दफा तो नहीं, मगर कम से कम दो-तीन दफा शतरंज के खेल में मीनू जीत गई थी।
तब विमल का पिता अपने बेटे को कई शतरंजी चालें सिखाता और उसे जीतने के लिए प्रोत्साहित करता।
इसके बावजूद प्रशांत, मीनू से शतरंज के खेल में मात ही खा जाता था।
उसी दौरान मीनू को अचानक तेज बुखार चढ़ा और डाॅक्टरों के अथक प्रयासों के बावजूद भी वह बच नहीं सकी।
इस घटना से प्रशांत को काफी सदमा पहुंचा, क्योंकि उस समय तक वह मीनू को दिल से चाहने लगा था
और थोड़े ही दिनों में उन दोनों की शादी भी होने वाली थी।
मीनू की मृत्यु के बाद प्रशांत उसकी याद में आंसू बहाने लगा।
इस मामले में विमल तथा राजेश भी कम दुखी नहीं थे।
प्रशांत को मीनू से शतरंज खेलते-खेलते ही बेहद प्रेम हो गया था और वह उससे ही शादी करने के ख्वाब देखने लगा था।
पर दोनों ने शतरंज खेलते हुए एक-दूसरे को स्पर्श तक नहीं किया था।
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मीनू की मृत्यु के बाद प्रशांत ने शादी न करने का मन बना लिया था और मीनू का एक मोम का पुतला बनवा कर अपने शयनकक्ष में रखवा लिया था।
उसी शयनकक्ष में प्रशांत का कम्प्यूटर भी फिट था।
उस रोज प्रशांत बड़ा उदास था। उसे मीनू की बड़ी याद आ रही थी।
टेबल पर शतरंज की गेम सजी थी और प्रशांत यह सोच रहा था, कि यदि मीनू जीवित होती
तो अभी उसके साथ बैठकर शतरंज खेलती।
वह शतरंज के मोहरों पर नज़रें गड़ाये हुए उसे देख ही रहा था कि अचानक सफेद घोड़े ने ढाई चाल चली
और घोड़ा अपने आप सफेद रंग के पायदे से आगे आकर बैठ गया।
प्रशांत का बड़ा ताज्जुब हुआ, कि सफेद घोड़े ने अपनी चाल कैसे चल दी,
जबकि उस कमरे में उसके अलावा और कोई नहीं था। उसने चारों तरफ देखा, पर उसे वहां कोई नज़र नहीं आया।
फिर प्रशांत ने भी अपने काले घोड़े के सामने वाले पायदे को दो कदम आगे बढ़ा दिया।
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उसी समय दूसरी तरफ के घोड़े ने भी ढाई चाल चली और वह पायदे के आगे आकर बैठ गया…
”ओह माई गाॅड!“ फटी आंखों से शतरंज की बिसात की ओर एकटक लगाये देखता हुआ बोला प्रशांत, ”यह चालें कौन चल रहा है?“
प्रशांत के मुख से प्रश्न तीर की तरह छूटा,
तो उसे महीन-सी आवाज सुनाई दी, ”अब आगे की चाल चलो। मैं तुम्हें शह और मात देकर रहूंगी।“
वह आवाज़ प्रशांत को कुछ जानी-पहचानी सी लगी।
प्रशांत ने फिर से अपने रूम में चारों तरफ निगाहें दौड़ाईं, पर उसे कोई नज़र नहीं आया।
उत्सुकतावश प्रशांत ने फिर से अपने पायदे को दो कदम आगे बढ़ा दिया,
यह देखने के लिए कि अब भी कोई हवा में चाल चलता है या नहीं?
इस दफा सफेद ऊंट के सामने बैठे पायदे ने दो कदम आगे बढ़ा दिये। फिर क्या था… प्रशांत शतरंज के खेल में डूबता ही चला गया। वह भी अपनी चालें चलने लगा।
अभी गेम आधी ही हुई थी, कि एक जानी-पहचानी आवाज़ प्रशांत को सुनाई दी,
”यदि आज तुम हार गये, तो सुहागरात मनाई जायेगी और यदि मैं हार गई, तो कभी भी शतरंज खेलने के लिए तुम्हारे पास नहीं आऊंगी।“
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”तुम मीनू हो?“ प्रशांत ने एकदम से पूछ लिया।
इस पर उस अदृश्य आकृति ने जवाब दिया, ”हां, मैं मीनू ही हूं।“
इस जवाब से प्रशांत खुशी से उछल पड़ा और बोला,
”मैं तुम्हें हरा कर ही दम लूंगा, पर तुम मुझे दिखाई क्यों नहीं दे रही हो?”
”वो सब बाद में बताऊंगी, फिलहाल शतरंज की बाजी खेलो। फिर देखते हैं अंजाम क्या होता है?“
फिर प्रशांत बड़ी तत्परता से शतरंज की बाजी खेलने लगा और अंततः वह हार गया।
प्रशांत के हारते ही वही महीन-सी आवाज़ कक्ष मंे गूंजी,
”तुम हार गये हो, अब सुहागरात का समय आ गया।
क्यों न अब सुहागरात मना लें, मेरे अरमान भी बड़े प्यासे हैं सनम।”
”ठीक है डार्लिंग! पर तुम मुझे नज़र क्यों नहीं आ रही?“
”तुम्हारे लिए मैं कोशिश करती हूं।“
मीनू की आत्मा ने कहा और थोड़ी ही देर बाद वह सफेद लिबास में प्रशांत को नज़र आने लगी।
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”अरे वाह! तुम तो वाकई मीनू हो।“ प्रशांत ताज्जुब से उसे निहारते हुए बोला, ”यह सब कैसे संभव है? तुम तो इस दुनियां को छोड़ चुकी हो न।“
”यह दूसरे जहान की बाते हैं, तुम्हें समझ में नहीं आयेंगी।“
मीनू की आत्मा ने बड़ी ही प्यासी आवाज में कहा,
”आओ अब खेल खेलें, जिस्मानी शतरंज का मदहोशी भरा खेल।“
प्रशांत ने हैरानी से पूछा, ”वह कैसा खेल होता है?“
”समझाती हूं।“ मीनू, प्रशांत के करीब पहुंची और उसे पीछे सरका कर पलंग पर लेटा दिया,
”अब मैं जिस्मानी शतरंज की पहली चाल चलती हूं। मुझे घोड़े की चाल बेहद पसंद है न,
इसलिये शुरूआत घोड़े की चाल से करती हूं।“
नीचे झुक कर मीनू ने प्रशांत के वस्त्र में कैद ‘घोडे़’ को सहलाना आरम्भ कर दिया और बोली,
”मैं घोड़े की चाल को ढाई कदम आगे बढ़ा कर अपनी चाल की शुरूआत करती हूं,
ताकि तुम बाद में मेरी ‘रानी’ को अच्छी तरह से मात दे सको।“
मीनू के स्पर्श से वाकई प्रशांत के घोडे़ ने ढाई कदम की छलांग लगा कर अपना असली स्वरूप अख्तियार कर लिया।
उसके बाद तो प्रशांत में ऐसी बेताबी छाई, कि वह बावला-सा हो गया और उसी वक्त मीनू बेलिबास होकर पलंग पर चित्त लेट गई,
”अब मेरी ‘रानी’ को अपने शतरंजी घोड़े से मात दे डालो।”
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मीनू की रानी के दीदार करके प्रशांत बावला हो गया और उसने अपनी पतलून एक ही झटके में उतार कर ‘रानी’ को मात देने के लिए अपनी चाल चल दी।
मीनू की रानी हवा में उछल-उछल कर घोडे़ से मात खाने लगी,
तो प्रशांत बेतहाशा अपने शतरंजी घोडे़ को दौड़ाने लगा।
”आह…उह…
प्रशांत तुम अपनी चाल चलते रहो,
इस प्रकार की शतरंज में बड़ा ही आनंद आ रहा है।
तुम्हारा प्यादा वाकई बड़ा ही अनोखा व ताकतवर है।“
”मेरी मीनू…तुम भी अपनी चाल चलो न नीचे से…
ताकि मेरा घोड़ा भी मस्त होकर तुम्हारी रानी को मात दे सके।”
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”हां..प्रशांत ओह मेरे प्रशांत हां..बस ऐसे ही…
बिल्कुल ऐसे ही खेलो।” मादक नशीली आवाज में बोल रही थी मीनू, ”तुम्हारा घोड़ा बिल्कुल सही चाल और सही तरीके से चल रहा है।
तुम्हें नहीं पता प्रशांत तुम्हारे घोड़े से मात खाने के लिए मेरी रानी कितनी मचल रही है,
अंदर ही अंदर पिघल रही है।”
”मेरा घोड़ा भी बहुत खुश है मीनू, तुम्हारी रानी से मिलकर।
सोच न था कि कोई लड़की मृत्यु के बाद भी प्रकट होकर ऐसा अनोखा कामसुख दे सकती है।”
फिर वाकई सरपट तरीके से प्रशांत का घोड़ा मीनू की घाटियों में दौड़ने लगा।
मीनू की घाटी निहाल हो गई।
मीनू नीचे से घड़सवार को उत्साहित करती हुई बोली, ”ओह मेरे तगड़े घुड़सवार दौड़ते रहो…बस दौड़ते ही रहो, जब तक तुम नहीं, बल्कि मैं न थक जाऊं तब तक दौड़ते रहो।”
”उई…हू..म… आह…ओ…“
मीनू, प्रशांत नीचे से मादक सिसकियां भरती हुई बोली,
”अपने घोड़े को और जोर से दौड़ाओ किसी घुड़सवार की तरह मेरे मैदान में दौड़ओ न प्रशांत। तुम्हारे घोड़े की जीत ही मेरी जीत है।“
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”जानेमन मेरे घोड़े पर पहले अपने हाथों की चाबुक तो चला दो,
ताकि ये तैश में आकर खूब तेज और अच्छे दौड़े।“
फिर वाकई जब घोड़ा, मीनू की घाटियों से बाहर आया,
तो मीनू ने अपनी नाजुक हथेलियों की चाबुक से घोड़े को खूब सहलाया और प्यार की चोंटें ऊपर-नीचे मारीं।
देखते ही देखते घोड़ा और जोश में आकर अकड़ने लगा और हिल-डुल कर हिनहिनाने लगा…
फिर तो वाकई प्यार का घोड़ा ऐसे दौड़ा, मीनू की दोनों घाटियों चारों खाने चित्त हो गईं।
करीब आधे घण्टे तक रानी तथा घोड़े की शह और मात का सिलसिला चला और अंततः प्रशांत के घोड़े ने हार मान ली
और वह अपना बल, रानी पर न्यौछावर करके एक तरफ लुढ़क गया।
थोड़ी ही देर बाद प्रशांत गहरी नींद में सो गया।
सुबह जब उसकी आंख खुली, तो उसे लगा कि उसके जिस्म में जान ही नहीं है।
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दांत ब्रश करने के लिए जब वह वाॅश वेसिन के पास पहुंचा
और वाॅश वेसिन के ऊपर लगे शीशे में अपनी शक्ल देखी, तो वह दंग रह गया।
उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था। मानो उसके जिस्म में खून ही नहीं।
फिर उसे अपने ‘घोड़े’ में भी पीड़ा महसूस होने लगी।
उसने बाथरूम में जाकर घोड़े का मुआयना किया, तो उसकी हालत देखकर वह और भी परेशान हो गया।
उसने देखा, कि उसका घोड़ा काफी हद तक सूजा हुआ था और सुर्ख हो गया था। मानो उसे किसी रेतिली जगह पर लगातार देर तक रगड़ा गया हो।
”ओह माई गाॅड! यह क्या हो गया?“ प्रशांत के मुख से यकायक उक्त शब्द निकल पड़े।
वह तुरन्त हाथ-मुंह धोकर डाॅक्टर के पास गया और अपना ईलाज करवाया।
फिर उसे रात वाली घटना याद आ गई, हालांकि पहले वह उस रात वाली घटना को स्वप्न मात्र ही मान रहा था।
पर जब उसे याद आया, कि उसके साथ रात में मीनू ने सुहागरात मनाई थी, जिस्मानी शतरंज खेली थी,
तो उसे यकीन होने लगा, कि वह स्वप्न नहीं, बल्कि हकीकत थी।
फिर क्या था… उस रात वाली घटना को याद करके प्रशांत सिहर उठा।
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उसने इस घटना के विषय में अपने पिता को भी बताया, पर पिता ने अपने बेटे की बातों पर यकीन नहीं किया,
.बल्कि बेटे को यही कहा, कि उसने कोई डरावना सपना देखा होगा।
हालांकि बेटे ने पूरी बात नहीं बताई थी। उसने अपने पिता के केवल इतना ही बताया था,
कि गत रात्रि को मीनू उसके साथ शतरंज खेलने के लिए उसके शयनकक्ष में आई थी।
उसने यही नहीं बताया, कि उसने मीनू के साथ सुहागरात भी मनाई थी।
पर पिता ने अपने बेटे का चेहरा देखकर यह चिंता जरूर जताई थी, कि उसका चेहरा क्यों पीड़ा पड़ा हुआ है?
अब बेटा अपने बाप को यह हकीकत कैसे बता सकता था, कि उसका चेहरा पीला क्यों पड़ गया था…?
दो दिनों बाद फिर वही बात हुई…
मीनू, प्रशांत के शयनकक्ष में आई और पहले प्रशांत के साथ शतरंज खेलती रही।
फिर जैसे ही शतरंज की बाजी समाप्त हुई, तो प्रशांत के साथ यौनिक रूपी शतरंज बड़े ही निराले अंदाज में खेलने लगी।
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अभी प्रशांत पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुआ था,
कि उस रात फिर से प्रशांत के शतरंजी घोड़े की हालत पहले जैसी हो गई।
सुबह जब प्रशांत ने अपने घोड़े को देखा, तो वह पहले से ज्यादा सूजा हुआ था
वह ऐसे दिखने लगा, मानो पीलिया रोग का मरीज हो।
और उसके जिस्म की जान को भी जैसे किसी ने निचोड़ डाला था। उसका स्वास्थ्य दो-तीन दिनों में ही काफी गिर गया था।
अपने बेटे की दयनीय हालत देखकर पिता को भी चिंता सताने लगी।
पिता ने संजीदगी से जब बेटे से पूछा, तो बेटे ने सारी बात बिना लाज शर्म के पिता को बता दी। अब पिता को भी लगने लगा, कि ये मामला साधारण नहीं,
बल्कि बहुत ही नाजुक व गंभीर है। वह समझ गये, कि यह मामला ऊपरी हवा का है।
पिता ने फौरन चर्च के पादरी को बुला लिया और उसे सारा किस्सा कह सुनाया।
चर्च के पादरी ने बाईबिल की आयतें पढ़कर प्रशांत पर फूंका,
तो उसी वक्त पादरी के गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा और कान में बेहद महीन आवाज फुसफुसाहट के रूप में सुनाई पड़ी, ”यह मेरा प्रेमी है, मेरा शौहर है।
इसे मुझसे जुदा करने की कोशिश की तो इसी वक्त तेरे बदन से तेरी जान निकाल कर उसे अपना गुलाम बना लूंगी।
इसे अकेला छोड़कर दफा हो जा यहां से।
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अपने प्रियतम यानी प्रशांत को मैं अपने साथ ही लेकर जाऊंगी, ताकि यह मेरे साथ रहकर जीवन के मजे लूट सके, प्यार की शतरंज खेल सके।“
इसी के साथ पादरी को अपने गले पर किसी अदृश्य शक्ति की अंगुलियों का दबाव महसूस हुआ।
वे अंगुलियां बेहद ठंडी थी, मानो बर्फिला हाथ उसका गला दबा रहा हो।
पादरी ने अपनी हिम्मत बटोरी और मन ही मन ईसा मसीह से अरदास की, कि इस बला से उसे जल्दी मुक्त कराये।
ईश्वर ने उसकी अरदास सुन ली थी। इसी वजह से पादरी को तुरन्त राहत महसूस हुई।
उसकी गर्दन का दबना यकायक तथा स्वतः ही बंद हो गया।
इसे ईश्वर की अनुकम्पा मानकर पादरी तो सबसे पहले प्रशांत के रूम से बाहर निकला
और दरवाजे के बाहर खड़े प्रशांत के पिता के सामने हाथ जोड़ कर विनती करने लगा, ”ईश्वर के नाम पर मुझे माफ कर दें।
आपके बेटे को ठीक करना मेरे बूते की बात नहीं। आपके बेटे को तो कोई बड़ा तांत्रिक ही ठीक कर सकता है।“
पादरी की आवाज में कंपकंपाहट थी और वह चारों तरफ घूम-घूम कर देख भी रहा था, कि कोई उसे दबोचने के लिए आगे तो नहीं बढ़ रहा है…?
साथ ही पादरी बार-बार अपनी गर्दन को भी सहलाये जा रहा था।
अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए पादरी फिर बोला,
”मैं आपको उस ईसाई तांत्रिक का नाम व पता बता दूंगा, जो आपकी समस्या का समाधान कर देगा।
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वह तांत्रिक इस तरह की बुरी आत्माओं को वश में करना जानता है।
उसने सिद्ध साधकों से तथा अघोरियों से तंत्र साधना सीखी हुई है।
वह इस तरह की बलशाली तथा दुष्ट आत्माओं को वश में करके उन्हें सबक सीखा सकता है।
अब मुझे आज्ञा दीजिए। मैं आपको फोन पर ही उस तांत्रिक की डिटेल बता दूंगा।“
इतना कहकर पादरी एक क्षण के लिए भी वहां नहीं रूका और अपना सामान लेकर वहां से भाग गया।
बीच रास्ते में पादरी ईसा मसीह की प्रार्थनायें पढ़ता रहा था और चर्च पहुंच कर उस पादरी ने सबसे पहले अपने सभी वस्त्र चर्च के बाहर फिंकवा दिये।
फिर पवित्र जल से स्नान किया और उस रात ईसा मसीह के चरणों में बैठकर प्रार्थनायें करते हुए उनका धन्यवाद अदा करता रहा।
सुबह पादरी की नींद काफी देर से खुली। पादरी को उसकी एक ‘नन’ (पादरी की शरण में रहने वाली लड़की) ने बताया,
”सुबह 8 बजे से लेकर 9 बजे तक कई फोन आ चुके हैं। हर दफा फोनकर्ता ने यही पूछा था, कि पादरी ‘बाथम’ कहां हैं? पर मैं उन्हें क्या जवाब देती, क्योंकि आप गहरी नींद में थे।”
अपनी नन्स की बात सुनकर पादरी को यकायक याद आया,
कि प्रशांत के पिता विमल ने ही फोन किये होंगे। पादरी ने हाथ-मुंह भी नहीं धोये, चाय-नाश्ता भी नहीं किया और प्रशांत के पिता को फोन मिलाने लगा।
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पर दूसरी तरफ फोन अंगेज चल रहा था,
मानो किसी ने फोन का चोंगा उठाकर क्रेडिल से नीचे रख दिया था।
उस जमाने में केवल और केवल लैण्ड लाईन फोन ही हुआ करते थे,
जो एक तार से दूसरे फोन की तार से जुड़े होते थे। आजकल के आधुनिक युग की टेक्नोलाॅजी उस जमाने में थी नहीं,
तो पादरी को कैसे पता चलता, कि उसे किसने फोन किया था?
और प्रशांत के पिता विमल को भी पता नहीं चल सकता, कि उसे फोन या मिस्ड काॅल किसने की थी…?
पादरी बाथम को समझ आ चुका था, कि ये सब अनहोनी हरकतें क्यों और किस प्रकार हो रही थीं?
पर वह खुद भी उस हरकत से इतना डरा हुआ था, कि उसकी अपनी बुद्धि भी काम नहीं कर रही थी।
पादरी बाथम ने अपने एक सेवक को उस तांत्रिक के पास भेजा, ताकि वस्तु स्थिति से उस तांत्रिक को अवगत करवाया जा सके।
दोपहर को पादरी ने नाश्ता किया और अपने शयनकक्ष में जाकर सो गया।
तुरन्त ही उसे गहरी नींद आ गई। दोपहर के दो बजे उसकी नींद अचानक खुल गई। नींद खुलने की वजह भी बड़ी विचित्र थी।
चर्च की नन्स, पादरी के बदन पर सवार थी और ससंर्ग क्रिया को अंजाम दे रही थी।
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यह सब देखकर पादरी ने आश्चर्य से पूछा, ”लुसियाना, यह तुम क्या कर रही हो? तुम तो नन्स हो।”
”चुपकर पादरी, मैं लुसियाना नहीं, बल्कि मीनू हंू। तुझे मजे चखाने आई हूं मैं।“
कहते ही पादरी के जिस्म पर मीनू उछल-कूद मचाने लगी। पादरी को पता ही नहीं चला, कि कब और किसी वक्त उसके बदन से वस्त्र पृथक किये गये थे…?
और कब एक प्यासी प्रेतनी ने उसके छुपे ‘एहसास’ को अपनी दिल की अंधेरी ‘कोठरी’ में कैद कर लिया था…?
फिर एकाएक पादरी को समझते देर नहीं लगी और डर के मारे मन ही मन ईसा मसीह को याद करने लगा
और बाईबिल की पवित्र आयतें पढ़ने लगा।
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पादरी ने जैसे ही जोर-जोर से बाईबिल की आयतें पढ़नी आरम्भ की,
उसी वक्त मीनू भी हवा में हिलते हुए पादरी का मन कमजोर करने लगी, ताकि पादरी का मन मिलन करते हुए आनंद की ओर आकर्षित होने लगे।
पर पादरी ने बाईबिल की आयतें पढ़नी बंद नहीं की और उसी दौरान मीनू को तकलीफ होने लगी।
अंततः मीनू को पादरी को छोड़ना पड़ा।
मीनू का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह जाते-जाते कह गई,
”अब तूने मुझे रोका या फिर मेरे शौहर प्रशांत को मुझे अपने साथ ले जाने में कोई बाधा उत्पन्न की, तो अगली दफा तुझे मैं अपने साथ लेकर ही जाऊंगी।“
पादरी ने राहत की सांस ली। पर जब उसने अपने अंग को देखा, तो उसे बड़ी हैरत हुई।
पादरी का अंग दहकता हुआ अंगारा बना हुआ था। मानो उसे चारों तरफ से किसी रेती से रगड़ा गया हो।
उसके बाद तो पादरी की हिम्मत जवाब देने लगी।
वह स्वयं अपने मित्र तांत्रिक के पास पहंुचा और उसे सारी बात बता दी।
ताज्जुब की बात तो यह थी, कि पादरी का सेवक उस तांत्रिक तक पहुंच ही नहीं सका था।
जब पादरी ने अपने सेवक के विषय में पूछताछ की, तो पादरी को पता चला कि उसका स्वामी भक्त सेवक, तांत्रिक के पास न पहुंच कर, अपने घर पहुंच गया था और वहीं आराम फरमा रहा था।
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उस महान ईसाई तांत्रिक ने शांति पूर्वक अपने मित्र पादरी बाथम की बातें सुनी और सब कुछ पल में ही समझ गया।
उसके बाद उस तांत्रिक ने अपना सामान समेटा और पादरी के साथ प्रशांत के घर पहुंच गया।
प्रशांत के घर में उस तांत्रिक ने अनुष्ठान आरम्भ किया और मीनू के प्रेत को बुलाकर पहले तो उसे खूब समझाया,
पर जब मीनू कुछ भी समझने के लिए तैयार नहीं हुई, तब उस तांत्रिक ने आखिरी दांव आजमाया, जो उसने एक सिद्ध अद्योरी से सीखा था।
उस दाव व तांत्रिक उपचार के सामने मीनू की प्रेत छाया दुर्बल हो गई।
तांत्रिक ने मीनू की प्रेत छाया को एक बोतल में कैद कर लिया
और उस बोतल को आसाम के सिद्ध तारापीठ के श्मशान में गाढ़ दिया।
इस तांत्रिक उपक्रम के बाद प्रशांत को मीनू की प्रेत छाया ने कभी तंग नहीं किया
और वह एक हफ्ते में ही स्वास्थ्य लाभ को प्राप्त करके ठीक हो गया था।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।