मेरी उम्र अभी केवल 26 साल है और मेरे पति की 35 साल है। मैं शुरू से ही बहुत ही ज्यादा कामुक स्वभाव की रही हूं। मेरा स्कूल और कॉलेज में भी बहुत से लड़कों के साथ अफेयर रह चुका था। इतना ही नहीं, मैंने अपने उन सभी यारों की मोटी और सख्त लकड़ी का स्वाद भी बड़े मजे ले लेकर चखे थे। कुल मिलाकर मुझे जिस्मानी प्यास बुझाने की लत पड़ चुकी थी।
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आपको राज़ की बात बताऊं तो मैंने अपना कुँवारापन 18 साल की उम्र में ही भंग कर दिया था। यानी मैंने 18 साल की कमसिन जवानी में ही, मोटी लक्कड़ अपने तैखाने में ले लिया था। उस समय मुझे शुरू में बहुत तकलीफ हुई, लेकिन धीरे-धीरे मजा भी बड़ा आया था। जिसके बाद तो मेरी आग ऐसे भड़की मैं लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन अपनी अंधेरी गुफा में लड़कों के खूँखार जानवरों को पनाह देने लगी थी।
एक दिन की बात है। अब तक मैं 22 साल की हो चुकी थी। मेरे पड़ोस में ही एक अंकल रहा करते थे, जिन्हें मैं चाचा कहा करती थी। क्योंकि वो मेरे पिताजी से कुछ साल छोटी उम्र के थे। वो अक्सर मेरी पढ़ाई को लेकर बातें किया करते थे। मेरे भविष्य को लेकर चिंता जताया करते थे।
जिसे देखकर मेरे माता-पिता भी उन्हें बहुत मानते थे। लेकिन ना मेरे घर वाले ये जानते थे और ना ही कभी मैंने ये महसूस किया था कि जिन्हें मैं चाचा कहती हूं, वो मेरे साथ चूचूचाचा करना चाहते थे। यानी उनकी नजर मेरे मखमली कोमल बदन पर थी। वो मुझे अपने नीचे अपने मोटे जानवर से नुंचवाना चाहते थे।
हुआ ये था कि एक दिन मैं अंकल यानी पड़ोसी चाचा की तबियत के बारे में पूछने गई थी। क्योंकि पता चला था कि उनकी तबियत ठीक नहीं है। उस समय चाचा घर पर अकेले ही थे। वो लेटे हुए मोबाइल देख रहे थे। मैंने पहुंच कर कहा, ‘‘चाचा जी कैसी तबियत है अब आपकी।’’
मैंने उस समय केवल बदर पर टीशर्ट पहनी हुई थी, जिसके नीचे कुछ भी नहीं था। और बस स्कर्ट डाली हुई थी। मेरी टीशर्ट में उठे हुए मेरे मोटे गोल संतरों को देखते हुए चाचा ने कहा, ‘‘बड़े ही मस्त हैं।’’
ये देखकर मैं एक बारको झेंप गई। इस पर चाचा ने बात को संभालते हुए कहा, ‘‘मैं मेरी तबियत की बात कर रहा हूं। तुमने अभी पूछा ना कि कैसी तबियत है।’’
‘‘ओह!’’ मैंने चैन की सांस ली, ‘‘ये तो बहुत अच्छी बात है।’’
फिर चाचा बोले, ‘‘लेकिन अभी थोड़ा और ठीक होना बाकी है।’’
मैंने कहा, ‘‘मतलब, अभी पूरा आराम नहीं मिला है।’’
‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है।’’ चाचा ने मुझे अपने पास बुलाते हुए कहा, ‘‘आराम तो मिल गया है।’’
‘‘तो फिर।’’ कहकर मैं चाचा के पास आकर उनके बगल में बैठ गई।
इस पर चाचा ने मेरी गोरी गदराई जांघ पर हाथ रख दिया और बोले, ‘‘लेकिन अभी शांति नहीं मिली है।’’
मैं चाचा की हरकत और बात को देखकर घबरा गई, ‘‘मतलब चाचा जी।’’
चाचा ने मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालते हुए जांघों को सहलाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जवान हो गई हो। समझदार हो, अब तुम्हें समझाना पड़ेगा क्या?’’
कहकर चाचा ने अचानक मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे गुलाबी होंठो पर हल्के से किस्स कर दिया।
अचानक ये सब देखकर मैं सन्न रह गई। बेशक मैं बाहर लड़कों के साथ बहुत कुछ कर और करवा चुकी थी। लेकिन चाचा से मुझे बिल्कुल भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैं उन्हें इज्जत से देखा करती थी। लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे बुरा नहीं लगा। मैं चाचा की छाती पर सिर टिकाये ये सब सोच ही रही थी। चाचा की हरकत और हद आगे बढ़ गई। उन्होंने मेरी टीशर्ट के ऊपर से ही मेरे गोल संतरों को जोर से दबा दिया।
इस पर मैं चीखी, ‘‘उई कितना जोर से दबा दिया।’’ फिर मैं तैश में आने का नाटक करती हुई बोली, ‘‘ये सब क्या है चाचा जी। ये गलत है।’’
इस पर चाचा ने टीशर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरे संतरों पर रख दिया, ‘‘अपने दिल से पूछो, क्या ये सही में गलत है।’’ अब चाचा ने मेरी पिछवाड़ी पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘क्या तुम नहीं चाहती हो ये सब हो हमारे बीच।’’
पता नहीं मुझ पर चाचा के छूने का क्या असर हो रहा था। मैं उनके जाल में फंसती जा रही थी। चाचा की बात ही अलग थी। उनके प्यार जताने का अंदाज ही अलग था कि मैं खुद को रोक ना सकी। मैंने कहा, ‘‘लेकिन दरवाजा खुला है और चाची आ गई तो।’’
‘‘तेरी चाची अभी नहीं आने वाली।’’ चाचा ने बताया, ‘‘वो थोड़ी दूर गली में कीर्तन में गई है। दो तीन घंटे से पहले नहीं आने वाली।’’ फिर चाचा ने मेरी पिछवाड़ी को जोर से दबाते हुए कहा, ‘‘जा अब दरवाजे की कुंडी लगा दे और जल्दी मेरे पास आ।’’
मैं फौरन दरवाजे की कुंडी लगाकर चाचा के करीब आ गई। लेकिन मैंने पूछा, ‘‘आपकी तबियत का क्या?’’
‘‘अरे मेरी जान मेरी तबियत ऐसी है कि मैं किसी और को कैप्सूल दूंगा, लेकिन तबियत मेरी ठीक हो जायेगी।’’
‘‘मैं समझी नहीं।’’ मैंने चाचा से कहा।
तो चाचा ने बेशर्म होकर अपने पायजामें में से अपना मोटा सख्त खूँखार जानवर को आजाद कर दिया। जिसे देखकर मैं घबरा गई। बाप रे! कितना लंबा और शैतान जानवर था चाचा का। लेकिन मैं खुश भी बहुत ही की आज तो मजा ही आ जायेगा। पहली बार इतना बड़ा जानवर, मेरी अंधेरी जंगल में शिकार करेगा।
तब चाचा ने अपने जानवर को हाथ में लेकर सहलाते हुए कहा, ‘‘ये रहा कैप्सूल, जो मैं आज तुम्हें खिलाऊंगा। जिसके बाद मेरी तबियत पूरी तरह हरी-भरी हो जायेगी।’’
इस पर मैं भी मजाक करते हुए बोली, ‘‘आपके मोटे लंबे और सख्त जानवर की नीयत को देखकर, तो लगता है कि आपकी तबियत तो ठीक हो जायेगी। मेरी हालत और तबियत की एैसी-तैसी हो जायेगी।’’
इस पर चाचा और मैं साथ में हंसने लगे। फिर अचानक चाचा ने मुझे सिर से लेकर पैर तक पूरी तरह आदमजात हालत में कर दिया। पूरी तरह खाली थी। मेरे दूधिया और कमसिन बदन को देखकर चाचा लार टपकाने लगे। उनका नीचे का जानवर ऊपर-नीचे हिल-डुलकर प्यार की सलामी दे रहा था।
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चाचा ने भी अपने सारे बदन को खाली कर दिया और तपाक से अपने जानवर को मेरी साँसों के हवाले कर दिया। अचानक ये सब हुआ कि मैं संभल नहीं पाई। लेकिन मैं रूकी नहीं। मैंने चाचा के जानवर को अपनी गरम साँसों से महकाना शुरू कर दिया। चाचा को बड़ा मजा आ रहा था।
चाचा साथ में मेरी गोल चिड़ियों को भी दबाये और सहलाये जा रहे थे। ये सब मुझे भी अच्छा लग रहा था। फिर अचानक चाचा ने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया। फिर जैसे ही उन्होंने पहला वार मेरी नीचे गुलाबी दुनियां में किया, मैं जोर से चीखी।
‘‘चाचा मर गई मैं।’’ मैंने हाथ जोड़े, ‘‘निकालो जानवर को बाहर, मैं इसके पंजे का वार नहीं झेल पा रही हूं।’’
चाचा ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और धीरे-से बोले, ‘‘सबर करो, धीरे-धीरे तुम्हें भी मजा आयेगा।’’
फिर मैंने थोड़ा इंतजार किया और चाचा के वार झेलती रही। चाचा ने मुझे ऐसे-ऐसे आसनों में ठोका कि मेरी हालत खराब कर दी। लेकिन सच कहूँ दोस्तो, मजा भी बहुत आया। चाचा ने पूरे 45 मिनट तक ऐसा बजाया कि मैं उनकी दीवानी हो गई। मुझे बहुत मजा आया। बेशक मेरी हालत पतली हो गई थी, लेकिन मजा भी तो इसी में आता है। वाकई में चाचा एकदम मर्द थे।
अब तो जब मौका मिलता अंकल, मुझे दबोच लेते और जमकर मेरा शिकार करते। जिसमें मुझे भी बड़ा मजा आता था। लेकिन एक दिन अंकल यानी चाचा ने कहीं और नया मकान ले लिया। वो हमारा मोहल्ला छोड़कर चले गये थे। अब मैं उदास हो गई थी। मेरी नीचे की दुनियां वीरान हो गई थी। जिसे मैं फिर से आबाद करना चाहती थी।
लेकिन भी मेरी शादी हो गई। लेकिन पति में बात नहीं थी, जो चाचा में थी। ऐसा नहीं था पति से कुछ भी नहीं होता था। शुरू-शुरू में पति ने खूब अच्छे से बजाया मुझे। मुझे अच्छा लगता था। पर मैंने कहा ना, वो बात नहीं थी। धीरे-धीरे पति का डंडा मुरझाने लगा। जोश भी खत्म होने लगा।
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बातों बातों में एक दिन पति ने बताया कि उन्होंने शादी से पहले जवानी में खूब हाथ चलाया था। यानी हस्तमैथुन किया था। कई सालों तक हिलाया था। जिसके कारण ही उनका तोता मुरझा गया था। उतना दमखम नहीं था। इसलिए एक वक्त वो भी आ गया कि पति डंडा खड़ा होना ही बंद हो गया।
मैं बहुत परेशान थी। मुझे तो रोज की डंडे की मार चखने की आदत थी। उस पर पति मिला वो भी नामर्द। लेकिन अब और भटकना नहीं चाहती थी। पराये मर्दों के साथ संबंध नहीं रखना चाहती थी। इसलिए मैंने खुद पति की समस्या का समाधान खोज निकाला था।
मुझे इंटरनेट पर पता चला कि कहान आयुर्वेदा कम्पनी का साइज किंग (SizeKing) कैप्सूल, मरे से मरे नामर्द को मर्द बना देता है। कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। खड़ा होना शुरू हो जाता है। लंबा होना शुरू हो जाता है। टेढ़ापन और कमजोर नसों को भी ठीक करने में मदद करता है।
मैंने ये कैप्सूल पति को खिलाया और 2 से 3 महीने में मेरा पति ऐसा मर्द बन गया कि मैं अब चाचा को भी भूल गई थी।