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बताता हूं दोस्तों हैरान ना हो। वैसे आप समझ तो गये होंगे। जी हां, चुम्मी यानी पेलू की मस्त माल बीवी का रोज का नाटक है। यानी पेलू चंद, अपनी बीवी को पेलना चाहता है। लेकिन लगभग हर रात ही चुम्मी कोई ना कोई बहाना बनाकर पेलू चंद के खड़े अरमान पर पानी फेर देती थी।
यानी पति को मना कर देती थी, जिसके बाद बेचारा पेलू चंद केवल नाम का ही पेलू चंद रह जाता था। मजबूतरी में बेचारे को बाथरूम में घुसना पड़ता था। जहां वो बीवी को कोसता हुआ सारा गुस्सा अपने नीचे को सख्त लंबे चौड़े जानवर पर उतारता था। अपने नीचे जानवर की गर्दन को हथेली में लेकर ऐसे तरोड़ता और मरोड़ता था कि बेचारे जानवर का सफेद पसीना निकल जाता था।
अरे वाह दोस्तों आप तो वाकई बहुत ही ज्यादा समझदार मालूम होते हैं। ठीक समझा आपने पेलू चंद हाथों से अपनी गर्मी निकालता था।
दोस्तों हमेशा से ऐसा नहीं था। शादी की शुरूआत में पेलू चंद अपनी पत्नी चुम्मी को खूब पेलता था। इतना ही नहीं, चुम्मी भी मस्त तरीके से पेलू चंद से अपनी पिलवाती थी। पेलू चंद जैसे कहता था उसकी पोज़ में खड़ी होकर, लेटकर, घोड़ी बनकर, गधी बनकर, गोद में जोरदार पिलवाई करवाती थी। खुद भी ठुकाई का पूरा मजा लेती थी और पेलू चंद की तबियत को भी खुश कर देती थी।
दोस्तों एक सवाल तो आपके दिमाग में भी आ रहा होगा ये क्या नाम है पेलू चंद और बीवी का नाम चुम्मी। दरअसल मेरे प्यार दोस्तों, ये नाम दोनों पति-पत्नी ने एक-दूसर को शादी की पहली ही रात में ही दे दिये थे। जब उनकी सुहागरात(suhagrat) थी।
सुहागरात में जब पेलू चंद कमरे में पहुंचा। जहां उसकी चिकनी कमसिन उम्र की गदराई बदन वाली बीवी घूंघट किए हुए बैठी थी। पेलू चंद ने कमरे के अंदर कदम रखा, तो झट से चुम्मी बेड से उठी और दूध का गिलास उठाकर पति को देने लेगी।
पति ने गिलास पकड़ कर एक सांस में गटक लिया। उसके जैसे ही चुम्मी पति के पैर छूने के लिए झुकी, तो फौरन पति यानी पेलू चंद ने उसके कंधों को पकड़ कर उठाते हुए ठरकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘मेरी जानेमन झुकने की ज्यादा जल्दी पड़ी है क्या?’’ फिर अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला, ‘‘आज सारी रात तुम्हें झुकना ही है।’’
पति कहने का मतलब समझ कर घूंघट के अंदर ही चुम्मी मुस्कराने लगी। सोचने लगी कि आज की रात उसकी नीचे की गुलाबी दुनियां की खैर नहीं है। पति पूरे मूड में लग रहा है। फिर घूंघट के अंदर से पति को कुछ आवाज सुनाई दी। पति ने सुनने की कोशिश की तो। चुम्मी कह रही थी, ‘‘सुनो जी, ऐसे ही बातें करोगे कि खोलोगे भी।’’
इस पर फिर पति मजाक करते हुए बोला, ‘‘क्या बात है मेरी जानेबहार। अभी कुछ सैकैण्ड पहले झुकने को तैयार थी और अब अपने कपड़े खुलवाने को मरी जा रही हो। तुम कहो तो ऐसे ही डाल दूं।’’
पति की गरम बातें सुनकर बुरी तरह शरमा गई चुम्मी। वो फिर घूंघट के अंदर से ही बोली, ‘‘धत्त! मैं घूंघट क बात रही हूं।’’ आगे बोली, ‘‘लगता है जल्दी मुझे नहीं आपको है। तभी तो घूंघट के पहले ही मेरो वो खोलना चाहते हो।’’
ये सुनकर दोनों पति-पत्नी साथ में हंसने लगे। उसके बाद प्यार से पेलू चंद ने चुम्मी यानी अपनी दुल्हन का घूंघट खोला और सुंदर मुखड़े के दीदार किए। सामने मस्त माल देखकर पेलू चंद का घोड़ा टाइट होकर पायजामे के अंदर हिनहिनाने लगा। जिसे चोरी-छिपे चुम्मी ने भी ताड़ लिया था। ये देखकर चुम्मी मजाक करते हुए बोली, ‘‘लगता है घोड़ा रेस लगाने के लिए बेचैन है।’’
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पत्नी के मुंह से ऐसा सुनकर एक बार को चौंक गया पेलू चंद। फिर उसने अपने पायजामे की ओर देखा, तो समझ गया कि बीवी ऐसा क्यों कह रही है। घोड़े की गर्दन ऊपर उठी हुई थी। जो पायजामें की खिड़की से बाहर झांकने के लिए बेकरार लग रहा था।
इसके बाद तो पेलू चंद बेशर्म हो गया। उसने देखते ही देखते अपने पायजामे में से घोड़े को बाहर निकाल दिया। जिसे देखकर चुम्मी का दिल बैठ गया। वो ऐसे चौंकी जैसे सामने कोई मोटा लंबा अजगर देख लिया हो। वाकई में पेलू चूंद का घोड़ा बहुत सख्त जान था।
लंबा, मोटा और काफी खतरनाक लग रहा था। अब तो चुम्मी के पसीने छूटने लगे। उसे लगा कि आज रात या तो किसी तरह कटेगी या फिर फटेगी। फिर ये सोचकर शांत पड़ गई कि कुछ भी हो, आज देनी तो पड़ेगी ही । आखिर मेरी पति है और सुहागरात भी है। छोड़ने वाला तो है नहीं मुझे।
उसके बाद पति ने पत्नी के और पत्नी ने पति के कपड़े उतारने शुरू कर दिये। जैसे जैसे कपड़े खुलते हुए दोनों की धड़कनें बढ़ती गईं। फिर तो जैसे ही चुम्मी पूरी तरह तन से खाली हो गई। तो नीचे से लेकर ऊपर तक उसके मखमली बदन को देखकर पेलू चंद के घोड़े की लार टपकने लगी।
यानी वहां से हल्का-हल्का चिपचिपा पानी रिसने लगा। क्या gori गदराई जांघें थी। जांघों के बीच में एक गुप्त अंधरी दुनियां थी, जिसमें घुसकर वहां की सैर करने के लिए पेलू चंद और पेलूं चंद ने नीचे का दीवाना घोड़ा मरे जा रहे थे।
फिर जैसे ही पेलू चंद की नजर चुम्मी ऊपर बदन पर गोल-गोल टाइट संतरों पर पड़ी तो। उससे रहा नहीं गया। उसने झट से दोनों सेबों को हाथों में जोर दबोच लिया। तभी चुम्मी चीखी , ‘‘आई मम्मी। क्या कर रहे हो। ये मांस हाड के संतरें हैं। सचमुच के संतरें नहीं हैं।’’
मगर बीवी के कहने का पेलू चंद पर कोई असर नहीं हुआ। वो दोनों सतरों को मुंह में लेकर उनका रस चूसने लगा। चुम्मी को भी काफी मजा आ रहा था। काफी देर तक पेलू चंद संतरों का रस चूसता रहा। फिर उसने बीवी को बेड पर चित्त लेटा दिया और उसके ऊपर झुककर बोला, ‘‘सुनों मै मामला अंदर जमा रहा हूं। ’’
‘‘लेकिन प्यार से हां।’’ बड़ी ही सुरीली आवाज में बोली चुम्मी, ‘‘मैंन सुना है बहुत दर्द होता है पहली बार में।’’
लेकिन पति ने फिर मजाक में बात को उड़ाते हुए कहा, ‘‘मेरी गुलबदन पहली बार नहीं, पहला वार कहो। मेरे पहला वार सहन कर पाओगी। इससे पहले बीवी कुछ कहती, तपाक से पेलू चंद का सख्त घोड़ा, चुम्मी की चिकनी मिट्टी वाले मैंदान में कूद पड़ा। जिसे चुम्मी सहन नहीं कर पाई। वो जोर से चीखी, ‘‘हाय मेरी मां मैं मर गई। तुम्हें मेरी कसम अपने घोड़े को मेरी रेस की मैदार से बाहर निकालो।’’
इस पर पति सीना चौड़ा करते हुए बोला, ‘‘मेरी जानेबहार ये पेलू चंद का घोड़ा है। एक बार रेस में उतर गया तो। रेस जीतकर ही मैदान छोड़ेगा।’’
फिर तो पेलू चंद के घोड़े ने ऐसी रेस लगाई कि बेचारी कुंवारी दुल्हन हाय-तौबा करती रह गई। पेलूं कुत्ते की तरह बीवी को पेले जा रहा था। रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था। कभी इधर पलटने को कहता। कभी ये पोज बना बोलता। कभी ऐसे दे, कभी वैसे दे। अब ऐसी हो जा, अब वैसी हो जा। कुल मिलाकर शामत आ रखी थी चुम्मी की। वाकई में लंबी रेस का घोड़ा था पेलूं चंद का।
धीरे-धीरे चुम्मी यानी दुल्हन का दर्द भी कम होता रहा है। उसे भी अब मजा आने लगा था। उसने भी पति के मोटे डंडे नीचे लेटे ही पति को बांहों में ले लिया। फिर धीरे से कान के पास फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘ओह बहुत मजा आ रहा है। थोड़ा और जोर से करो ना।’’ बीवी बोले जा रही थी और पति के होंठों को चूमे जा रही थी।
पति ऊपर से लेता जा रहा था और बीवी नीचे लेटी हुई मदहोशी भरे शब्दों में कुछ ना कुछ बड़बड़ाये जा रही थी। जैसे कि पति पहला धक्का देता, तो कहती, ‘‘ओह जानूं और होंठों को चूम लेती।’’ फिर पति दूसरा देता तो कहती,, ‘‘हाय बहुत मजा आ रहा है।’’ कहकर फिर होंठों को चूम लेती।
ऐसे ही हर हमले का पूरा मजा लेती हुई कुछ बोलती और पति को चूम लेती। पति ने पत्नी की नीचे वाली चीज सुजा दी थी, तो पत्नी ने भी पति के ऊपर वाली चीज यानी होंठों को सुजाकर रख दिया था। कुलमिलाकर दोनों की मस्त सुहागरात मनी थी।
शुरू में बेशक बीवी का हालत बुरी हो गई थी। लेकिन फिर बाद में जब पत्नी की मैदान की पिच्च थोड़ी गीली हो गई थी, तो पति की जोरदार बैटिंग से उसे भी मजा आने लगा था। उसे कोई परेशानी हो रही थी। फिर तो पत्नी ने भी खूब साथ दिया और खुद ने भी पति के ऊपर आकर प्यार की कमान संभाली थी और पूरे मजे लिए। यानी बीवी पति के जोश और उसके सख्त प्यार की दीवानी हो गई थी।
इसके बाद जब दोनों साथ में नहाये, जहां एक और राण्उड दोनों ने नहाते हुए ही चलाया तो सुहागरात सफल हो गई। इसके बाद दोनों बिस्तर पर आ गये जहां दोनों ने एक-दूसरे का नया नामकरण कर डाला था। क्योंकि पति ने पत्नी को खूब पेला था। देर तक घोड़ी बनाकर पेला था, इसलिए पत्नी ने प्यार से पति को पेलू कहना शुरू कर दिया था। ठीक ऐसे ही पत्नी ने पति को होंठों को चूम-चूमकर लाल कर दिया था, तो पति ने भी पत्नी नाम चुम्मी रख दिया।
दोस्तों जिसके बाद तो आगे चलकर चुम्मी को पति से पिलवाने का ऐसा चस्का लगा कि वो हमेशा मूड में रहती। उसे पति के डंडे के स्वाद का चस्का लग गया था। क्योंकि जिस तरह से पति पेलता था उसे बड़ा मजा आता था। इसीलिए पति को भी पत्नी की लेने का चस्का लग गया था। जिस रोज पत्नी की लेता नहीं था या पत्नी खुद नहीं देती थी। पेलू चंद का घोड़ा बेचैन होकर हिनहिनाने लगता था।
ऊपर से पत्नी खुद देने को तैयार रहती थी। लेकिन ऐसे में धीरे-धीरे जब कई साल गुजरते गए तो पत्नी की आग ठंडी पड़ने लगी। वो अब बहाने बनाने लगी। सप्ताह में एक बार होते हुए , महीने में एक बार पेलने वाला प्रोग्राम चलने लगा। जिससे पेलू चंद बहुत परेशान रहने लगा था, क्योंकि उसके अंदर की आग अभी बरकरार थी। लेकिन पत्नी के जिस्म के चूल्हे की आग ठंडी हो गई थी।
जब भी पति काम से शाम को वापिस लौटता। तो पत्नी की थकी हालत को देखकर उसका मूड खराब हो जाता। कभी पत्नी सिर पर कपड़ा बांघे हुए मिलती। कहती कि आज सुबह से सिर बहुत दुख रहा है।
पेलू समझ जाता कि बहन की घोड़ी आज भी नहीं देगी। कभी सिर दर्द, कभ कमजोरी, कभी थकान, कभी पीरियड् देर से आ रहे हैं, कभी दिमागी तनाव ज्यादा है। अब ये सब कुछ ठीक भी हो जाये, तो अब सफेद पानी की समस्या हो रही है। कुल मिलाकर जिंदगी बिना बीवी को पेले हुए गुजर रही थी। बस नाम का ही पेलू चंद रह गया था पति।
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इसी वजह से पेलू चंद अब कमजोर भी होने लगा था। एक दिन ऑफिस में साथ में करने वाले दोस्त ने पूछा, ‘‘क्या बात है यार। काफी महीने से देख रहा हूं, तू अपने आप में ही खोया-खोया रहता है। कमजोर भी हो गया है।’’
फिर दोस्त मुस्करा कर बोला, ‘‘अब तो तू बीवी के साथ पेलने वाली बातें भी नहीं बताता। पहले तो रोज तेरे पास नये-नये किस्से होते थे कि आज ऐसे ली। आज वैसे ली। आज तेरी भाभी ने मेरी ही ले ली। मुझे तो लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती, वो ही मेरी ले लेती है।’’
दोस्त की बात सुनकर थोड़ा भावुक हो या पेलू। ये देखकर दोस्त समझ गया कि मामला कुछ गड़बड़ है। पति-पत्नी का मामला लगता है। फिर जब दोस्तों उसे कुरेदा, तो पेलू ने सारी बात बता दी। इस पर दोस्त पहले तो थोड़ा मुस्करायां।
फिर एक गहरी सांस लेकर बोला, ‘‘हू..म! सारा मामला समझ गया।’’ फिर पेलू के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, ‘‘यार देख बुरा मत मानिओ। मुझे लगता है इसमें गलती तेरी है।’’
इससे पहले कि पेलू हैरान होकर कुछ कहता। दोस्त ही बोल पड़ा, ‘‘दरअसल मेरे साथ भी यही कहानी थी। शादी के शुरूआती दिनो में मेरी बीवी और मेरे बीच में भी सबकुछ ठीक था। हम दोनों खुलकर रात का मजा लेते थे। रात क्या अगर मौका मिलता तो सुबह क्या और दोपहर क्या और रात क्या। बस दोनों शुरू हो जाते थे। फिर जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया है। कई साल गुजरते गए मैं कमाने में बीजी हो गया और बीवी घर के कामो में बीजी हो गई।”
“अब मेरी बीवी का मन पहले की तरह नहीं रहा था। वो कभी-कभी अपने जिस्म में हाथ लगाने देती थी। मैंने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि मैं भी कम ही उसको बिस्तर पर चलने के लिए कहता था।”
“लेकिन जब मैंने देखा कि अब तो महीने में एक या दो बार ही हमारे बीच तकधिनाधिन होने लगा है। तब मेरे नीचे डंडे की घंटी बजाने लगी। मैंने महसूस किया कि बीवी को जब कहो देने के लिए। बहाने बनाने लगती है। जैसे कि सिर दर्द, कमजोरी, थकान, आलस, नींद ज्यादा आना, पीरियड्स की गड़बड़ी तो मैं परेशान होने लगा। फिर मैंने ध्यान से सोचा और बीवी से इस बारे में सही से बात की तो।”
“मेरी बीवी ने रोते हुए कहा, ‘‘‘मैं बहाने नहीं बनाती हूं। पहले नहीं देती थी क्या तुम्हें। जैसे कहते थे वैसे ही देती थी। लेट के, बैठ के, घोड़ी बनके हर तरह से तुम्हें खुश रखती थी। लेकिन अब मेरा शरीर और स्वास्थ्य साथ नहीं देता है, तो मैं क्या करूं। मैं तुम्हारे नीचे आना चाहती हूं, लेकिन ये सब सारी परेशानियां मेरा मन मार देती हैं।’’
तब मैंने बीव को प्यार से गले लगाया और उसकी बात को समझने की कोशिश की। फिर मैंने बीवी को आयुर्वेदिक सिरप वैनीटल लाकर दिया। ये काहन आयुर्वेदा कंपनी की आयुर्वेदिक दवा थी। जोकि महिलाओं की हेल्थ प्रॉब्लम के लिए काम करती थी।
जैसे कि हम दोनों की बीवियां बताती हैं, सिर दर्द, थकान, कमजोरी, तनाव वगैरह.. ये सारी समस्याएं पूरी तरह ठीक हो गई थीं। वो भी बस दो से तीन महीने के अंदर। उसके बाद तो मेरी बीवी का पूरा ध्यान मेरे नीचे के डंडे पर होने लगा था। वो फिर से मेरे डंडे की चोट खाने के लिए बेकरारा रहने लगी थी। अब कोई परेशानी या बहाना हमारे बीच में नहीं था।’’
दोस्त की सारी बात सुनने के बाद पेलूचंद ने एक गहरी सांस भरते हुए कहा, ‘‘हूम! सही कह रहा है तू यार। वाकई मैंने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। जरा मुझे भी नंबर दे, मैं भी वैनीटल सिरप बीवी को पिलान शुरू करता हूं।’’
फिर तो दोस्तों पेलूचंद की भी सारी समस्याएं ठीक हो गईं। चुम्मी फिर से चुम्मियां देने लगी थी। फिर एक दिन दोस्तों पेलूंचद ने अपने दोस्त को धन्यवाद कहा और दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई। दोनों अपनी-अपनी बीवियों के साथ दो-चार दिन के लिए बाहर टूर पर घूमने निकल गये। वहां दोनों ने खूब अपनी-अपनी बीवियों को बजाया। पेलू चंद ने बीवी को ऐसा सुजाया कि बेचारी कहने लगी अब दोबारा नहीं आऊंगी तुम्हारे साथ। इस पर पति मजाक करते हुए बोला, ‘‘तो फिर किस के साथ आओगी। क्या वो मुझसे भी ज्यादा पेलेगा तुम्हें।’’
पेलू चंद ने कहा और दोनों मियां बीवी साथ में हंसने लगे।