मस्तराम की कहानी में अतिकामुक सेक्सी Savita Bhabhi की प्यार, रोमांस व सेक्स उत्तेजना से लबरेज देसी कहानी… पढ़ें और मजा लें इस सेक्सी देसी कहानी का…
सविता नाम था उसका। Savita Bhabhi तो वो बनी राज के प्यार में पड़कर…
खूबसूरत मुस्कराता चेहरा, बड़ी-बड़ी आंखें, सेक्सी होंठ, सुराहीदार गर्दन, लंबा-छरहरा बदन तथा मासूमियत अंदाज।
राज ने उसे एक वीडियो एलबम के रीलिज होने के मौके पर एक समारोह में देखा था।
राज खुद एक सिंगर था।
वह अच्छा गाता था।
जब सविता मंच पर आई, तो जोरदार करतल ध्वनियों से उसका भरपूर स्वागत किया गया था।
इसके बाद राज ने सविता के स्वागत में एक गाना गया था।
गाने के बोल थे, ‘गोरी-गोरी बाहों पर अंगड़ाई लेते अंदाज, झील-सी आंखों में नाचती शराब..’
और जब उसका गाना समाप्त हुआ,
तो खुद सविता ने मंच पर राज को गले लगा लिया था
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तथा उसे एक प्यार भरा चुम्बन देते हुए बोली थी, ”आई लव यू राज।“
हालांकि सविता ने यह बात मजाक में कही थी,
पर राज ने उसे गंभीरता से लिया था।
सविता की बातें, उसके अंदाज राज के दिल में गड़ गये थे।
जब तक समारोह सम्पन्न नहीं हो सका,
राज, सविता के गिर्द ही नाचता रहा।
यहां तक कि दोनों ने डिनर भी साथ लिया था।
उसके बाद सविता चली गयी थी।
राज दिल थामे उसे जाते देख रहा था।
वह सविता को रोक भी नहीं सकता था।
दरअसल राज को अपनी हैसियत का पता था।
सविता एक अमीर सेठ की पत्नी थी वहीं राज नवोदित सिंगर था।
उसकी कुल जमापूंजी संगीत था।
वैसे राज गठीले बदन का युवक था।
उसका आकर्षक व्यक्तित्व सबको लुभाता था।
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सविता के जाने के बाद राज उस कार्ड को देखता रह गया,
जो सविता ने उसे दिया था तथा उसे मिलने के लिए कहा था।
वह कार्ड अब भी राज के हाथ में था।
उस पर लिखा था, सविता तथा नीचे उसका पता लिखा था।
राज ने घर लौटकर अपने दिल को समझाने की भरसक चेष्टा की,
लेकिन हर पल, हर क्षण सविता ही उसके जेहन पर सवार रही
और जब राज को लगा कि वह सविता से मिले बगैर नहीं रह सकता, तो वह उससे मिलने चल पड़ा।
उस रोज राज, सविता से मिलने का इरादा करके उसके बंगले पर पहुंचा,
तो बंगले की सजावट तथा उसकी भव्यता का अंदाजा करके उसका दिल धाड़-धाड़ करके बजने लगा।
पहले तो उसका मन हुआ कि वह वहां से लौट जाये,
फिर हिम्मत करके वह आगे बढ़ा
तथा चैकीदार को ‘स्लीप’ थमाते हुए सविता मैडम से मुलाकात कराने का आग्रह किया।
चैकीदार ने सविता तक उसकी बात पहुंचा दी।
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कुछ देर में ही राज बंगले में सविता के सामने खड़ा था।
उसके सपनों की शहजादी सविता मुस्करा रही थी।
उसने नीले रंग की चुस्त जींस तथा टाॅप पहन रखा था।
वह काफी खूबसूरत लग रही थी।
राज उसे देखता रह गया।
सविता ने पूछा, ”कहो राज, कैसे आना हुआ?“
”म….मैडम, आप बहुत खूबसूरत हैं।
जबसे आपको देखा है मेरा दिल बेचैन हो उठा है।
हर पल हर क्षण सोते-जागते बस आप ही मेरी आंखों में रहती हैं।
जब दिल न माना, तो मैं आपसे मिलने चला आया।“
सविता ने राज को चाय पिलाई।
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कुछ संयत होने के बाद राज बोला,
”दीपिका आपकी मुस्कान में वो जादू है जो किसी को भी दीवाना बना दे।“
सविता मुस्करा कर सुनती रही।
फिर दोनों बातचीत करने लगे।
इस बंगले में 22 वर्षीया सविता अपने पति सेठ किरोड़ीमल के साथ रहती थी।
किरोड़ीमल चालीस साल के हो चुके थे।
सविता उनकी दूसरी बीवी थी।
किरोड़ीमल उस वक्त बंगले पर मौजूद नहीं थे।
सविता ने कहा, ”राज, तुम मुझे बहुत अच्छे लगे
और तुम्हारा वो गाना आज भी मैं भूली नहीं हूं।
उसी गाने से मुझे एहसास हुआ कि तुम मुझे काफी चाहते हो।
मुझे यकीन था कि तुम मुझसे मिलने जरूर आआगे।“
”हां सविता और तुम्हारा वह ‘किस’ मुझे उद्वेलित करता रहता है।
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अगर आप बुरा न मानें, तो मैं आपका एक और ‘किस’ पाकर धन्य हो जाना चाहता हूं।“
”केवल ‘किस’….और कुछ नहीं…“ सविता ने शरारत से कहा।
सुनकर राज का दिल उछल पड़ा।
वह आगे बढ़ा तथा उसने सविता को अपने बाहुपाश में कस लिया।
सविता मचल उठी उसने स्वयं को राज की बाहों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की।
इससे उत्साहित होकर राज ने सविता के नाजुक अंगों को सहलाना शुरू कर दिया।
सविता अचानक सीत्कार कर उठी।
राज ने अंदर से कमरे का दरवाजा बंद किया
और सविता को बाहों में उठा कर उसे बेड पर गिरा दिया।
फिर वह उसे निर्वस्त्रा करते हुए बोला,
”सविता, तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत युवती हो।
तुम्हारा एक-एक अंग ऐसा है,
जैसे मक्खन व शहद का काॅकटेल हो।
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मैं जी भर कर इन अंगों को चूमना चाहता हूं।“
कहकर राज, सविता के निर्वस्त्रा होते अंगों को छूने तथा चूमने की चेष्टा करने लगा।
इस दौरान सविता दो बार कसमसाई, फिर उसकी सांसे बोझिल होने लगीं।
राज ने सविता को सर से पांव तक निर्वस्त्रा कर दिया
तथा पहले उसके अंगों का भरपूर दीदार किया।
पागलों की भांति उन्हें चूमने-चाटने लगा। सविता कसमसाती रही…
”राज आज मुझे नोंच डालो, मेरी देह का भुर्ता बना दो आज।“
बेतरह मचलती हुई बोली सविता, ”तुम नहीं जानते कब से प्यासी हूं मैं।
मेरे जलते अनमानों पर अपने प्यार की ठंडी बौछार कर दो राज।“
”तो फिर अपने वस्त्रा उतारो न।“
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सविता के वस्त्रा उतारता हुआ बोला राज,
”पहले वस्त्रों कैद से अपने तन को आजाद करो,
ताकि हम दोनों के तन बिना किसी कैद के आजादी पूर्वक प्यार का जश्न मना सकें।“
फिर राज ने पहले सविता को निर्वस्त्रा किया
और उसके बाद स्वयं भी उसी अवस्था में आ गया।
फिर उसने सविता के नाजुक अंगों व जांघों को मसलना शुरू किया,
तो सविता के अधरों से कामुक सिसकारियां फूट पड़ीं।
वह बेतहाशा राज से लिपट गई…
”ओह राज!“ सविता की आवाज में कामुकता का नशा था,
”कहां थे तुम अब तक, मैं शादीशुदा होकर भी अपने आपको कुंवारी ही महसूस कर रही थी।
तुम्हारे हाथों में तो जादू है, छूते ही पिघलने लगी हूं।
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आज मुझे अपनी गर्मी की आंच में ऐसे पिघला दो,
कि लंबे समय तक तुम्हारे प्यार की गर्म आंच मेरी देह को सुकून पहुंचाती रही।“
”मेरी जानेमन सविता।“
राज भी सविता के सुर्ख लबों को चूमते हुए बोला,
”तुम भी कुछ कम नहीं हो।
तुम्हारा गदराया बदन देखकर मेरे दिल में भी एकाएक उत्तेजना का तूफान उमड़ने लगता है।“
वह सविता की कोमल निर्वस्त्रा पीठ को सहलाते हुए बोला,
”तुम्हारे बदन में शादी के बाद भी गजब का कसाव है।
तुम्हें भोग रहा हूं तो ऐसा लग रहा है
मानो किसी कुंवारी कोमल बाला को भोग कर अपनी प्यास शांत कर रहा हूं।“
”तो फिर करो न अपनी प्यास शांत।“
एकाएक सविता ने राज को नीचे किया व स्वयं ऊपर आकर प्यार की कमान संभाल ली,
”मगर मेरे राजा ध्यान रखना कहीं ये प्यासी बिस्तर पर प्यासी ही न रह जाये।
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अपनी प्यास शांत करके मुझे अधूरा न छोड़ जाना।“
”चिंता क्यों करती हो मेरी रानी।“
सविता के गोरे मांसल कबूतरों को मसलते हुए बोला राज,
”बंदा अपनी रानी का पहले ख्याल रखेगा।
जब तक उसकी रानी की ‘चाहत’ पूरी नहीं हो जाती,
तब तक ये गुलाम अपनी ‘चाहत’ को साइड में ही रखेगा।
तुम्हें तुम्हारी मंजिल पर पहंुचा कर ही मैं खुद अपनी मंजिल पर बाद में पहुंचूगा।“
”आओ न फिर नोंच डालो मेरी जवानी।“
सविता भी राज के अधरों को चूमते हुए बोली,
”खाली बातों से ही दिल बहलाओगे या फिर शिकार भी करोगे?“
”ऐसा शिकार करूंगा कि सब चीथड़े-चीथड़े हो जायेंगे।“
”बाते न बनाओ राज पीस तो दो मुझे ऊपर से नीचे तक आज।“
फिर देखते ही देखते राज सविता के पूर्णतया समा गया।
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सविता एक पल को छटपटाई,
मगर फिर मुस्कराते हुए बोली,
”ओह राज… बहुत कठोर है तुम्हारा ‘दिल’,
मगर मजा भी बहुत आ रहा है।“
”अभी तो शुरूआत है मेरी जान, आगे-आगे देखना करता हूं क्या?“
”मैं तो देख ही रही हूं मेरे सनम।“
बेतहाशा राज से लिपटते हुए बोली सविता,
”तुम बस आगे-आगे करते जाओ।“
फिर सविता की कोमल देह में समा कर राज आंदोलित होने लगा,
तो सविता की हवस का पारा न रहा।
वह तो ऐसे राज को अपने में समेट रही थी जैसे जन्मों की दौलत आज हासिल कर लेना चाहती हो…
”ओह राज…आह…मेरी मां…।“
कामुक स्वर सविता के मुख से फूटने लगे,
”राज..ओह राज…वाकई बहुत अच्छा लग रहा है।“
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”मुझे भी बहुत मजा आ रहा है मेरी सविता।“
सविता के दोनों यौवन कलशों को हाथ में लेकर बोला राज,
”तुम्हारे कलश तो बेहद ही आकर्षक हैं सविता।
इन्हें छूकर तो मैं धन्य हो गया हूं।“
”इतने ही अच्छे हैं मेरे राजा तो इन्हें प्यार क्यों नहीं देते अपने मुख से।“
मादक स्वर में बोली सविता, ”दो न इन्हें अपना मौखिक दुलार।“
फिर राज, सविता के यौवन कलशों को मौखिक दुलार देने लगा।
सविता आनंद के सागर में गोने खाने लगी…
लगभग आधा घंटा तक राज व सविता एक-दूसरे को नोंचते-खसोटते रहे,
फिर शिथिल पड़ते चले गये।
सविता को राज से भरपूर संतुष्टि मिली,
तो वहीं सविता के हुस्न का स्वाद चखकर राज खुद को दुनियां का सबसे खुशनसीब इंसान समझ रहा था।
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सविता ने कहा, ”राज, आज से तुम्हारी हुई सविता।
अब जब जी चाहे, यहां चले आना।
मेरा दरवाजा तुम्हारे लिए हमेशा खुला रहेगा।“
राज ने एक बार फिर सविता को बांहों मंे भरकर चूम लिया और कहा,
”अब तो यह भौंरा किसी की और सुनने वाला भी नहीं है।
तुम्हारा पराग चूसने के बाद अब मुझे होश ही कहां रहेगा।
मैं तुमसे मिलने के लिए आता रहूंगा, ‘गुड बाय!“
राज चला गया।
आज जिन्दगी में पहली बार सविता के चेहरे पर वो मुस्कान थी,
जो उसकी संतुष्टि व तृप्ति की गवाह थी।
उस दिन से दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गयीं
और उनके बीच ऐसे संबंधों की शुरूआत हुई,
जो एकदम अलग व नया था। राज और सविता परस्पर मिलते रहे।
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प्रायः राज ही सविता से मिलने उसके घर आ जाता था
और दोनों घंटों बंगले में कैद होकर वासना का नंगा नाच करते थे।
पूरी तरह तृप्त व संतुष्ट होने के बाद ही दीपिका,
राज को वहां से जाने देती थी।
राज, सविता का दीवाना तो पहले से ही था,
अब सविता की मोहब्बत पाकर वह और उसके करीब आ गया था।
इसके परिणाम स्वरूप राज का संगीत का रियाज कम होता चला गया था।
वह संगीत से ज्यादा सविता में रूचि लेने लगा था।
इस कारण कुछ ही दिनोें में एक उभरता हुआ सितारा लुप्त हो गया था,
गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गया था।
जब तक राज संगीत के क्षेत्रा में उभरता हुआ सितारा था,
सविता उसमें आकर्षण महसूस करती रही थी,
लेकिन जब यह सितारा अपनी रोशनी खोने लगा,
तो सविता ने उसकी परवाह करनी छोड़ दी
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तथा एक दिन वो भी समय आया,
जब सविता ने राज को हमेशा के लिए अपने दिल से निकाल फंेका।
सविता की इस बेवफाई पर राज का माथा घूम गया।
उसके दिल को करारा झटका पहुंचा था।
उसने सोचा, जब सविता उसकी नहीं हो सकी,
तो वह सविता को किसी और का भी नहीं होने देगा।
यह सोचकर उसने एक कठोर फैसला किया
और एक दिन योजना बना कर वह सविता से मिला।
मौका अच्छा देखकर उसने सविता को चाकू मार कर उसका खेल खत्म कर दिया।
सविता की हत्या के जुर्म में राज को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।