किसी की सेक्सी कामुकता व गंदी हवस भरी मानसिकता को दर्शाती है ये कहानी antarvasna बिंदास जवानी लुट गई… जरूर पढ़ें
ये कहानी antarvasna कल्पना की है जो पंजाबी बाग में अपने माता-पिता के साथ रहती थी।
वे लोग गोहाटी के रहने वाले थे।
पिता इनकम टैक्स में अधिकारी थे, तो मां एक स्कूल में टीचर थी।
उनकी लाडली बेटी थी, कल्पना।
कल्पना को उन्होंने बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा था।
कल्पना इंटर में थी। वह कोचिंग करती थी।
मां-बाप पुराने ख्यालों के नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश भी उसी तरह की थी।
उन्होंने कभी भी अपने विचार उस पर नहीं थोपे।
कल्पना अति चंचल व शोख लड़की थी। वह जिद्दी भी थी।
घर में आधुनिक सुख-सुविधाओं के तमाम साधन मौजूद थे। पूरा परिवार दिल्ली में रह रहा था।
कल्पना मां-बाप की आंखों का तारा थी।
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वह निहायत खूबसूरत, चंचल व सुडौल बदन की मासूम लड़की थी।
उसका रंग गोरा तथा आंखें बड़ी-बड़ी थीं। सभी उसे भरपूर प्यार करते थे।
परिवार बड़ा ही आधुनिक था।
स्वयं कल्पना के पिता आधुनिक विचारों के कायल थे, जबकि उनकी पत्नी की वेशभूषा, अंदाज सब कुछ अंग्रेजियत की तरह ही था।
दम्पत्ति के रहन-सहन तथा उनके विचारों का कल्पना पर गहरा असर पड़ा था।
वह बहुत कम उम्र में ही लड़कों से मिलने-जुलने और बड़ी-बड़ी बातें करने लगी थी।
दम्पत्ति ने एक बेटे की भांति ही उसकी परवरिश की थी
कल्पना को इस बात का गर्व था, कि दूसरी लड़कियों के मां-बाप की भांति उसके मां-बाप दकियानूसी ख्यालों के नहीं थे।
वह अपना फैसला खुद करती थी। उसे अपने तरीके से जिन्दगी जीने की मां-बाप ने पूरी आजादी दे रखी थी।
कल्पना को अपनी संुदरता तथा अमीरी पर कुछ ज्यादा ही घमंड था।
वह फैशन की दीवानी थी। लेटेस्ट डिजाईन के आधुनिक कपड़े पहनने का उसे खूब शौक था।
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इन वस्त्रों में उसका रूप-यौवन और कहर ढाने लगता था, जिसे देखकर उसके मां-बाप का सीना फूलकर कुप्पा हो जाता था।
दम्पत्ति का ख्याल था कि कल्पना जैसी खूबसूरत लड़की इस शहर में और कोई हो ही नहीं सकती।
कल्पना को उसकी पसंद के कपड़े पहनने की पूरी आजादी थी।
वह प्रायः चुस्त जींस, ब्लाउज, स्कर्ट, मिडी या टाॅप ही पहनती थी, जिसमें उसके जिस्म के सारे उतार-चढ़ाव स्पष्टतया दृष्टिगोचर होते थे।
कल्पना माॅडलिंग को अपना कैरियर बनाना चाहती थी।
उसके विचार थे कि खूबसूरत लड़कियां अपने मांसल जिस्म की नुमाईश करके
इस क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकती हैं
इसलिए अपने लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में पहला कदम रखते हुए
उसने अभी से ही ‘बोल्डनेस’ को अंगीकार कर इसी तरह के तंग कपड़े पहनने शुरू कर दिए थे,
जिसमें उसकी सुंदर देहयष्टि देखने वालों की आंखों में चकाचैंध पैदा कर देती थी।
लोगांे पर अपने हुस्न का जलवा बिखेरने की चाहत रखने वाली कल्पना दरअसल यह भूल गयी थी
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कि वास्तविक जीवन और माॅडलिंग के क्षेत्रा में बोल्डनेस, दोनों अलग-अलग चीजें हैं।
वास्तविक जीवन में जिस्म की अधिक से अधिक नुमाईश करने वाली लड़की प्रायः मुसीबतें ही मोल लेती हैं।
तंग कपड़ों में शारीरिक सौष्ठव का प्रदर्शन करने वाली कल्पना ने भी लड़कों की नींद हराम कर रखी थी।
उसके निकट पहुंचने तथा उसका जिस्म पाने की लड़कों में होड़-सी मच गयी थी।
इन्हीं लड़कों में शामिल थे जयंत, सूरज और भानू!
कल्पना ने अपनी दिलकश अदाओं के पैने तीर से इन तीनों के दिलों को घायल कर रखा था।
वह प्रायः तंग कपड़ों में या फिर खुले बदन के माॅर्डन लिबास पहनकर सड़क से गुजरती थी
जिसमें उसके मांसल जिस्म के सारे उतार-चढ़ाव नजर आते थे
और जिसे देख-देखकर वे सभी लड़के पागल हुए जा रहे थे।
उन्होंने कल्पना का जिस्म पाने का संकल्प कर रखा था। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे।
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खुले विचारों वाली लड़की कल्पना के यूं तो अनेक दोस्त(पुरूष) थे।
मगर इन लड़कों से संबंध सिर्फ दोस्ती और बातचीत तक ही सीमित थे।
आदेश भी कल्पना का दोस्त था और इस दोस्ती की आड़ में वह उसका यौवन हासिल करना चाहता था।
एक दिन की बात है। उस दिन कल्पना काॅलेज के लिए घर से निकली थी।
सुबह के साढ़े छः बजे थे। मौका देखकर आदेश ने कल्पना से बात की।
उसने कहा, ”कल्पना, आई लव यू….! जबसे तुम्हें देखा है, मेरा दिल तुम्हें देखने के लिए तड़प रहा है।
मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूं।“
कल्पना ने आदेश को घूरती हुई निगाहों से देखा और कहा, ”आदेश, मेरे पास फालतू बातों के लिए वक्त नहीं है।
तुम दोस्त हो, तो दोस्ती की हद में ही रहना सीखो। इससे आगे बढ़ना मैं नागवार समझती हूं।
मुझे तो इस प्यार शब्द से ही नफरत है। वैसे भी मैं तुम्हें जान लेना चाहिए कि मैं माॅडलिंग के क्षेत्रा में अपना कैरियर बनाना चाहती हूं।
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मेरे लिए मेरा कैरियर महत्वपूर्ण है। आइंदा तुम इस तरह मेरा रास्ता रोकने की कोशिश मत करना।“
कहकर कल्पना, आदेश को परे धकेलते हुए कोचिंग की राह निकल पड़ी।
कल्पना ने अपने हाव-भाव से यह जाहिर कर दिया था, कि वह भविष्य में आदेश के साथ कोई संबंध रखना नहीं चाहती थी।
आदेश को पहली बार अपमान व चोट का एहसास हुआ।
इससे पहले उसने कल्पना से बात की थी, लेकिन आज पहली बार उस पर प्रेम का इजहार किया था।
कल्पना ने उसकी भावनाओं पर तुषारपात किया था।
वह अपना दिल मसोस कर रह गया,
लेकिन कुछ ही देर में जब उसके दोस्त दिखे तो उसने अपने दोस्तों को कल्पना के बारे में सारी बातें बता दीं।
साथ ही वह बोला कि ”अब सीधी अंगुलि से घी नहीं निकलने वाला उसने मुझे अपमानित किया है
मैं इसका बदला लेकर रहूंगा तुम लोग मेरा साथ दो।“
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इस तरह आदेश ने सभी लड़कों को तैयार कर लिया।
आदेश ने उन सभी के साथ मिलकर कल्पना से अपने तरीके से बदला लेने की योजना बनाई।
इसके लिए उपयुक्त अवसर की तलाश में आदेश समेत सभी लड़के रहने लगे।
कल्पना के अपमान ने आदेश के दिलों दिमाग को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया।
वह कल्पना से किसी भी तरह अपना संबंध तोड़ना नहीं चाहता था
लेकिन जब कल्पना ने दोस्ती तोड़ ही डाली, तब वह उसके प्रति बदले की आग में सुलग उठा था।
उस दिन शाम के सात बजे थे।
कल्पना एक इंस्टीट्यूट में माॅडलिंग की टेªनिंग ले रही थी।
इंस्टीट्यूट उसके घर से लगभग चार फर्लांग दूर था। वह रोज पैदल ही इंस्टीट्यूट जाती थी।
रोजाना की तरह वह उस दिन भी ठीक समय पर इंस्टीट्यूट के लिए घर से निकली थी।
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जैसे वह घर से निकली आदेश जो एक पेड़ की ओट में खड़ा था उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
आदेश के साथ भानू, जयंत और सूरज भी थे।
वे सभी लड़के दूसरे रास्ते से आगे आकर कल्पना की राह में खड़े हो गए
वे वहां से कल्पना के गुजरने का इंतजार करने लगे
थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद उन लड़कों को जैसे ही उनका शिकार नजर आया।
वैसे ही तेजी से वे शिकार की तरफ बढ़े। उन्हें देखकर कल्पना सिहर उठी।
वह और तेजी से आगे बढ़ने लगी लड़कों के इरादे उसे ठीक नहीं लग रहे थे कल्पना काफी डर गयी थी।
फिर वह गली से निकल कर उस बिल्डिंग में बढ़ गयी, जिसके चैथे माले पर वह इंस्टीट्यूट था
जिसमें कल्पना माॅडलिंग की ट्रेनिंग लेती थी। वह जल्द से जल्द आॅफिस में पहुंच जाना चाहती थी।
जैसे ही उसने लिफ्ट की ओर कदम बढ़ाया, उतनी ही तेजी के साथ आदेश देशी कट्टा लेकर उसकी तरफ बढ़ा
इसके पहले कि कल्पना को स्थिति का आभास होता, आदेश ने देशी कट्टा दिखा कर उसे चुप रहने पर मजबूर कर दिया।
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एकदम फिल्मी स्टाईल में कल्पना का अपहरण करके लड़कों ने उसे एक मकान में ले जाकर
मकान का दरवाजा भीतर से बंद कर दिया।
”मैंने तुम लोगों का क्या बिगाड़ा है?
मुझे बर्बाद करने से क्या मिलेगा? प्लीज़ छोड़ दो…. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।“
भय से कांपती हुई कल्पना ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
”कल्पना, मैं तुमसे कितनी बार कहूं कि मैं तुमसे बेइन्तहा मोहब्बत करता हूं।
लेकिन तुम मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं हो, इसलिए मुझे यह कदम उठाना पड़ा है।
आखिरी बार मैं तुमसे यह जानना चाहता हूं, कि तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं?“
”आदेश, मैंने तुमसे पहले भी कहा था और आज भी कह रही हूं, कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती।“
आदेश समझ रहा था कि कल्पना डर जाएगी
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सहज ही उसकी बात मानते हुए उसकी बांहों में समा जाएगी।
मगर कल्पना ने उसकी हर पेशकश को सिरे से ठुकरा दिया था। तब आदेश ने न चाहते हुए भी एक भयानक निर्णय ले लिया।
उसने अपने दोस्तों को इशारा कर दिया। फिर तो वहां जो कुछ हुआ, वह इंसानियत के नाम पर कलंक था।
पहले तो सभी ने मिलकर कल्पना को सिर से लेकर पांव तक पूर्ण निर्वस्त्रा कर दिया।
जब वह निर्वस्त्रा हो गई तब वे सभी दोस्त कल्पना के निर्वस्त्रा अंगों को देखकर लार टपकाने लगे।
राक्षसों वाली हंसी हंसने लगे।
पहला बोला, ”यार ये तो कमाल ही है साली।“
वह कल्पना के दोनों कलशों को छूकर बोला, ”जरा इन्हें तो देखो, जी चाहता है काट कर खा जी जाऊं इन्हें।
हाय कितने कोमल हैं ये।“
तभी दूसरा बोला, ”चल बे साले चुपकर।
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काट कर तू ही अकेला खा जायेगा, तो हम कहां जायेंगे। इसे हम सभी मिल बांट कर खायेंगे।“
”अरे तुम ही करो ऐश इसके कलशांे को देखकर।“
वह कल्पना की ‘लाज’ पर हाथ फिराता हुआ बोला,
”मुझे तो बस एक बार यहां पर बसेरा मिल जाये, साला जन्नत का ही मजा आ जायेगा।“
उन सभी दोस्तों की वहशी भरी बातें सुनकर कल्पना अंदर ही अंदर आने वाले उन पलों के बारे में सिहर जा रही थी…
कांप रही थी कि न जाने ये दरिन्दे उसके शरीर के साथ क्या-क्या करेंगे..? कैसे-कैसे करेंगे…
वह हाथ जोड़कर रोती हुई बोली,
”प्लीज़ मुझे छोड़ दो। जाने दो… मुझे… मेरी लाज लूट कर क्या मिलेगा तुम्हें…“
”मजा मिलेगा मेरी जान… मजा।“
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तभी आदेश, कल्पना के नजदीक आया और उसके यौवन कलशों पर दांत गड़ा कर बोला,
”हमें मिलेगा मजा और तुझे मिलेगी सजा।“
आदेश द्वारा दांत द्वारा काटे जाने पर चीख पड़ी कल्पना,
”आ…ऐसे सितम न ढाओ मुझ पर…मैं पैर बढ़ती हूं तुम्हारे… मुझे मेरे घर जाने दो।“
”पहले जरा हमारा ‘काम’ तो हो जाने दो। उसके बाद सोचंेगे तुम्हें घर भेजना है या फिर कहीं ओर…।“
”क…क्…क्या मतलब है तुम्हारा।“
थर-थर कांपती हुई बोली कल्प्ना, ”कहीं से ओर से मतलब क्या है तुम लोगों का?“
”वो भी बता देंगे जानेमन।“ दूसरा दोस्त बोला, ”चिंता न करो.. धीरे-धीरे सब खुद-ब-खुद जानती जाओगी।“
”अब समय न गंवाओ दोस्तों।“ इस बार पुनः आदेश गुर्राते हुए बोला
”इसका रोने-धोने का नाटक तो चलता ही रहेगा। साली ने बहुत तरसाया है।
आज इसकी सारी हेकड़ी निकालेंगे हम मिलकर।
इसके एक-एक अंग का ऐसे बलात्कार करेंगे, इसकी रूह तक कांप जायेगी।“
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फिर कल्पना के हाथ-पैर बांधकर उसे जकड़ लिया गया।
पहले आदेश उस पर टूटा और देखते ही देखते उसकी नाजुक ‘लाज’ पर हमला बोल दिया।
”ओह मां…छोड़ दो मुझे… मर जाऊंगी मैं।“
एक जोरदार रोने तड़पने की गूंज गूंजी।
मगर भी दूसरे दोस्त ने उसके मुंह पर भी पट्टी बांध दी…
बेचारी कल्पना की आवाज अंदर ही अंदर घुट कर रह गई।
”आदेश तुम तो मुझे प्यार करते थे न।“
बेचारी कल्पना ने एक और प्रयास करने की चेष्ट की, ”तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते।“
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”वही तो तुझे समझाया था साली मैंने।“
आदेश ने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर मारते हुए कहा,
”तब तुझे प्यार का मतलब समझ नहीं आया…
अब मैं तुझे बताता हूं कि प्यार जब नफरत का रूप ले लेता है,
तो कितना खंूखार हो जाता है।“
फिर लगातार एक के बार एक प्रहार वह कल्प्ना की कोमल घायल हो चुकी ‘लाज’ पर करता रहा।
हर एक प्रहार पर कल्पना तड़प उठती थी।
उसकी आंखों से आंसू झरने की तरह बह रहे थे।
एक दयनीय याचना दी जैसे उसकी आंखों में जो अंदर ही अंदर उन बलात्कारियों से प्रार्थना कर रही थी कि उसे छोड़ दें
किसी जंगली जानवर की तरह उसका बेरहमी से शिकार न करें।
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मगर उन दरिन्दों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
बल्कि कल्पना जितना ज्यादा चीखती, रोती…तड़पती और मुक्त होने की चेष्ट करती, वह दरिन्दे वहशी और भी वहशियाना तरीके से उसके साथ बलात्कार करते।
आदेश जैसे ही कल्पना के ऊपर से हटा, तो तभी तपाक से दूसरा दोस्त कल्पना की रक्त-रंजित हो चुकी ‘लाज’ पर टूट पड़ा और अपनी मनमानी करने लगा।
कल्पना हाथ-पैर ही पटकती रह गई, मगर कर कुछ न सकी।
आखिर तीन-चार मुस्टंडे बलात्काकिरयों के समक्ष वह कोमल नारी क्या करती।
अभी दूसरे दोस्त ने अपनी मंशा पूरी भी नहीं की थी, तभी बिना अपनी बारी की प्रतीक्षा किये
बेसब्र होकर तीसरा भी मित्रा भी कल्पना पर टूट पड़ा और अप्राकृतिक तरीके से अपनी भड़ास निकालने लगा।
इस कार्य से तो कल्पना ऐसे तिलमिलाने लगी, जैसे किसी ने उसके गले पर आरी चला दी हो…
चैथे दोस्त की बारी आते-आते तो वह बेचारी अधमरी सी हो गई थी।
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या यूं कह लो कि बेहोश ही हो गई थी।
मगर फिर भी उन चारों को वहशियों को कोई दया नहीं आई।
वह तो अपनी वासना में ऐसे चूर थे,
उनका वश चलता उसकी लाश के साथ थी क्रूर तरीके से बलात्कार करते।
कल्पना बेजान-सी पड़ी रही जमीन पर।
उसकी देह के साथ क्या हो रहा है, क्या-क्या हो रहा है उसे अब कोई होश ही नहीं रह गया था।
वह जो जिंदा लाश की तरह शून्य में तांकती हुई अपनी दशा पर रो रही थी।
जब अच्छी तरह से चारों ने कल्पना को नांेच खसोटा,
उसके कोमल बदन के चिथड़े-चिथड़े करके अपने मन को शांत कर लिया
तब एक दोस्त बोला,
”अब करना क्या है इसका। होश में आने पर कहीं इसने अपना मुंह खोल दिया, तो?“
”होश में आयेगी तब तो अपना मुंह खोलेगी न।“
ओदश सख्त स्वर में बोला ”इसे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।“
कहने के साथ ही पहले से अपने साथ लाये तेज धार उस्तरे से आदेश ने कल्प्ना की गला रेत कर हत्या कर दी।
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कल्पना की हत्या करने के बाद सभी लड़के फरार हो गए।
मगर वे कब तक फरार होते कानून के हाथ मजबूत होते हैं।
पुलिस ने कल्पना की हत्या का मुकदमा दर्ज करके उसके कातिलों का पता लगाना शुरू किया तो जांच के क्रम में उपरोक्त लड़कों के नाम सामने आए
जिनसे कल्पना की दोस्ती थी। वे लड़के कल्पना के सबसे करीबी भी थे। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ हुई…
पूछताछ में उन सभी लड़कों ने अपना अपराध कबूल कर लिया।
पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश कर जेल भेज दिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है
अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।