ये desi sex story एक ऐसे जिस्म के रसिया की है जिसे कमसिन कली को रगड़ने और मसलने में मजा आता था… अवश्य पढ़ें…
… तो यहां से शुरू होती है desi sex story ”बाबू जी, इसमें मेरा क्या कसूर है?
बदकिस्मत तो मैं हूं जो ठेस लगते ही मेरी मटकी टूट गई।
मां घर में बहुत डांटेगी और साथ में मार भी लगेगी।“
बिलखती हुई मधू बड़-बड़ाई।
”डांट पड़े या मार पड़े,
मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं।
यह लो कपड़ा अभी धूप में सुखा कर ला दो,
वरना तेरे घर जाकर तेरी शिकायत करूंगा।
फिर तो तेरी… तुम्हें पता होना चाहिए
एक मुसाफिर गर्मी के दिनों में किस तरह दुःखी होता है
और छाया में कितना सुख पाता है। काश! मैं अभी और सो पाता।“
”लेकिन बाबू जी मेरे घर जाकर शिकायत मत कीजिऐगा।
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भले ही दण्ड रूप में मुझे जो सजा दे दीजिए,
परन्तु मां के हाथों मेरी पिटाई मत करवाना।
वह तो साक्षात् राक्षसी की अवतार है।“
मधू रूआंसी होकर गिड़-गिड़ाई।
”तुम कैसी सजा चाहती हो?“
मुसाफिर ने पूछा।
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”बाबू जी मैं क्या जानूं ऐसी गलती के लिये कैसी सजा होती है?“
मधू रोती हुई बोली।
”अच्छा पहले ये बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है?“
”बाबू जी मेरा नाम मधू है परन्तु,
लोग मुझे बिजली कहते हैं।
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वैसे मैं कोई बिजली से कम नहीं हूं।
बेशक मुझमें बिजली की भांति हर काम करने की आदत है,
जिसके कारण सभी लोग मुझे बिजली कहते हैं।“
मधू ने बताया।
फिर आगे बोली,
”बाबू जी सजा से जल्दी मुक्त कर दीजिए,
मुझे घर भी जाना है।“
मधू ने स्वीकृति भरी आवाज में कहा
और अपनी आंखें बंद कर ली।
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अत्यंत शीघ्रता से मुसाफिर ने उसके दोनों सुंदर गालों पर गीली मिट्टी लगा दी
और बोला, ”मधू अब आंखें खोल लो।“
”ये क्या आपने गीली मिट्टी लगा दी।“
मधू ने मुहं बनाते हुए कहा।
”चलो मैं अभी पोछे देता हूं।“
मुसाफिर मधू के दोनों गालों पर से अपने दोनों हाथों से मिट्टी पोंछने लगा।
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मधू को इस हरकत से सुखद आनंद की अनुभूति होने लगी।
वह मुसाफिर के सीने से जा चिपकी।
मुसाफिर के मन का वासना रूपी मन डोल गया।
”मैंने यह सब नाटक आपसे मिलने के लिये ही किया था।
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आप मुझे बहुत अच्छे लगे,
मैं आज आपकी बाहों में आकर निहाल हो गई हूं।
आप अपना शुभ नाम बताईये।“
मधू ने उसे स्पष्ट बताते हुए पूछा।
”मेरा नाम आकाश है।“
आकाश धीमे-धीमे, मधू का शरीर अपने हाथों से सहलाता रहा,
अनेक बार उसके सुर्ख गालों पर चुम्बन की बौछारें कर देता था।
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आकाश द्वारा बार-बार आलिंगन,
चुम्बन से मधू मदहोश होती चली गयी।
आकाश पर भी वासना का भूत सवार हो गया।
उसने मधू को अपनी बलिष्ठ बाहों से गोद में उठा लिया
और पास के ही गन्ने खेत में ले जाकर मधू को निर्वस्त्रा किया
और खुद भी उसी अवस्था में आ गया।
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”बाबू जी एक विनती है।“
इससे पहले आकाश,
मधू के ‘दिल’ में उतरता, मधू बोली,
”मैं पहली बार किसी पुरूष को समर्पित होने जा रही हूं,
पर फिर भी जानती हूं कि पहली बार में बहुत तकलीफ होती है…।“
”अरी पगली प्यार में लोग जाने क्या-क्या सह जाते हैं।
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बड़ी से बड़ी तकलीफ भी उन्हें आनंद देती है और तुम मेरे प्यार से डर रही हो।“
”ठीक है बाजू जी।“
मधू थोड़ा शर्माते हुए और घबराते हुए बोली,
”आप पर पूरा भरोसा है,
मगर फिर भी मेरी नाजुक देह का ख्याल करना,
जरा प्यार से काम लेना।“
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”घबराओ नहीं जानेमन।“
मधू के निर्वस्त्रा बदन को ललचाई नजरों से देखते हुए बोला आकाश,
”ऐसे काम पूरा करूंगा, कि मेरा काम भी हो जायेगा
और मजा भी पूरा आयेगा दोनों को।“
”तो फिर दो न मजे बाबू जी।“
अब तो मधू भी बेकरार होती हुई बोली,
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”और न तरसाओ राजा।“
मधू का इतना कहना था,
कि किसी तीरन्दाज की तरह आकाश ने तीर से सटीक निशाना भेद दिया…
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जबड़े भींचते हुए बोली,
”आपने तो कहा था बाबू जी,
मजा दूंगा, ये मजा दे रहे हो या सजा?“
वह आकाश को परे धकेलते हुए बोली,
”छोड़ो मुझे बहुत दर्द हो रहा है।“
”मजा भी आयेगा मेरी जान,
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चिंता क्यों करती हो।“
आकाश, मधू के दोनों मटकों को हाथ में उठाता हुआ बोला,
”सब्र रखो, सब्र का फल मीठा होता है।“
फिर आकाश अपने काम में लगा रहा।
कुछ देर आकाश के नीचे मधू तिलमिलाती रही,
मगर आकाश को जोशीले तन के नीचे धीरे-धीरे उसे भी आनंद की अनुभूति होती रही।
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अब तो वह भी नीचे पड़ी बुरी तरह आकाश से लिपट गई
और उसे प्यार के लिए उकसाती हुई बोली,
”ओह बाबू जी… क्या कर डाला… बहुत अच्छा लग रहा है…
आप तो नारी की हर कमजोर नस को जानते हो।
ऐसा प्यार दे रहे हो कि मैं तो अंदर ही अंदर बेतरहा पिघली जा रही हूं।“
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”सच मधू।“
मधू की गोरी जांघे सहलाते हुए बोला आकाश,
”तुम वाकई मुझसे बहुत आनंद प्राप्त कर रही हो।“
”हां बाबू जी।“
मादक सिसकियां लेते हुए बोली
मधू, ”स….ह..म.. आह…ओह बहुत मजा आ रहा है।
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आह…स…मुझे कभी छोड़ नहीं बाबू जी। ऐसे ही प्यार देना।“
”ओह मधू।“
”ओह बाबू जी।“
”मेरी मधू।“
”मेरे नटखट बाबू।“
कहकर मधू ने मस्ती के आलम में आकाश के होंठों पर एक जोरदार चुम्बन दे डाला।
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फिर वह दोनों भूखे भेड़िये ही तरह अपनी-अपनी काम-पिपासा की भूख मिटाने में तल्लीन हो गये।
कुछ समय बाद वासना का खेल समाप्त हुआ,
आकाश वहीं पर पड़ा रहा।
कुछ क्षण के बाद मधू का होश टूटा,
तो स्वयं को अस्त-व्यस्त देखकर वह अपने वस्त्रा पहनने लगी।
आकाश ने भी अपने वस्त्रा संभाले।
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पुनः आकाश ने मधू को गोद मंे ले लिया तब मधू बोली,
”आकाश तुम आज नहीं होते तो मैं किसी और की हो जाती।
तुम मेरे साथ विवाह कर लो फिर हम दोनों की जीवन रूपी जिन्दगी बड़े ही आराम से बीतेगी।“
इस वाक्य को सुनकर आकाश ने जवाब दिया,
”नहीं मेरी जान अभी मैं शादी नहीं करूंगा।
जो आनंद की अनुभूति ऐसे प्यार में होती है,
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वह शादी के बाद में नहीं।
फिर दूसरी बात यह भी है कि मैं तेरा हाथ अपने पिता जी से मांगने को कहूंगा,
तब सारी दुनियां के सारे सुख हम दोनों उठा पायेंगे।“
”लेकिन आकाश अब आप कब मिलेंगे?
मेरी कसम तुम जल्द ही आना।
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मैं तुम्हारा बेसब्री से राह देखूंगी।“
”मैं शीघ्र ही आऊंगा।
तुम मेरी राह यहीं पर देखना।
ठीक आज से दसवें रोज इसी वक्त का मेरा पक्का वायदा है।“
आकाश ने वायदा करके पुनः मधू को गालों में चुम्बन जड़ दिया
और अपने लक्ष्य हेतु प्रस्थान कर दिया।
इधर मधू अपने घर की ओर चल दी।
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आकाश मन में विचार करने लगा,
”आखिर मधू भी कोई चीज थी, आह!
टमाटर जैसे लाल व गोल गाल,
काले-काले घने लम्बे बाल,
कजरारी आंखें,
मुधर मुस्कान,
गुलाबी होंठ,
गठीला बदन,
सटीक वक्ष,
लचकती कमर
व हिरणी जैसी आखें
तभी तो वह उसका दीवाना हो गया था।“
अक्टूबर का दिन था।
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उस दिन का मौसम कुछ ठंडा था,
लेकिन उस दिन एक अजब-सी लहर थी।
लहर विशेष आकर्षण उत्पन्न कर रही थी।
आकाश गाड़ी से पटना की ओर रवाना हुआ।
टेªन कई स्टेशनों को पार करती हुई पटना पहुंच गई।
करीब आधे घंटे बाद ट्रेन वहां से रवाना हुई,
आकाश अपनी बर्थ पर लेटा हुआ था,
तभी एक अनजान युवती,
आकाश के पास आकर बोली,
”मुझे दिल्ली जाना है।
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मेरा टिकट जनरल का है,
उस डिब्बे में मैं चढ़ न सकी।
मैं इसी कोच में आ गई हूं, मैं अकेली हूं।
मैं अपने रिश्तेदार के पास जा रही हूं।
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कुछ दिन पूर्व ही उनका पत्र मिला,
मेहरबानी करके मुझे भी अपने पास बैठा लीजिए।“
”मुझे बैठाने में तो कोई एतराज नहीं है
लेकिन जब टिकट चेकर आयेगा
और पूछेगा, तो मैं क्या जवाब दूंगा।“
आकाश ने युवती से पूछा।
”पूछने पर कहिएगा कि यह मेरी धर्म पत्नी है।
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फिर तो दोनों आराम से चले जायेंगे।“
आकाश की आंखों में वासना का भूत सवार था।
वह नवयुवती के रंग-रूप पर मोहित-सा हो गया।
गोरी-गोरी कलाई काली कजरारी सुर्ख हिरणी जैसी आखें,
लंबे घने काले बाल, गठीला बदन।
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रात अधिक होने के कारण नवयुवती का नाम जानने की व्याग्रता आकाश को बेचैन किये जा रही थी।
लगभग ग्यारह बजने वाले थे तभी आकाश ने उस युवती का नाम पूछा।
जवाब में उस नवयुवती ने अपना नाम रजनी बताया।
प्रारम्भ से अब तक दोनों आपस में प्रेम कहानियां कहते-सुनाते रहे।
बात-बात पर आकाश ने उसे अपनी ओर आकर्षित कर लिया।
रजनी बोली, ”मैं आज तक प्रेम में ही भटक रही हूं
परन्तु यह पे्रम क्या होता है?
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शायद मेरी दिली तमन्ना आज अवश्य पूरी होगी।“
”रजनी बुरा न मानना आज मैं तुम्हारा हूं
और तुम्हारा ही रहूंगा।
हम दोनों दिल खोल कर प्रेम करेंगे।
इसके लिये एक ही रास्ता है।
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वह यह है कि दो बजे के आस-पास सारी सवारी सा जायेगी।
बस फिर क्या! मैं ट्वायलेट मंे जाऊंगा
और वहां तुम्हारा इंतजार करूंगा।
तुम एक मिनट बाद गेट खोल उसी ट्वालेट में पहुंच जाना मैं खोल दूंगा।“
”ठीक है, आप जैसा कहंेेगे मैं वैसा ही करूंगी।
अब देखिये क्या समय हुआ है?“
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घड़ी देखकर आकाश ने बताया,
”एक बजकर पचास मिनट होने वाला है।
अभी दो सवारी जगी हुई।
अभी कुछ देर इंतजार कर लेते हैं फिर तो रात हम दोनों की होगी।“
आकाश ने प्यार भरे लहजे में कहा।
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रजनी की नजरें चमक रही थीं।
प्यार भरी दास्तान सुनकर अंग-अंग खिल उठा था।
पूरे डिब्बे के लोग गहरी निद्रा में थे
उसी समय आकाश ट्वायलेट में पहुंच गया।
रजनी ने चिटकनी बंद की और वासना का खेल खेलने लगा।
आकाश ने रजनी के कपोलों पर अनेक चुम्बन जड़ दिये।
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उसके अंग-प्रत्यंग को मसल-मसल कर पानी-सा बना दिया।
अर्ध महदोश अवस्था में ही दोनों निर्वस्त्रा हो गये
फिर दोनों एक-दूसरे में समा गये।
रजनी उस स्थान पर व्यवस्थित रूप से लेट नहीं पायी
जिसके फलस्वरूप उसके कई अंगों में चोटें भी लग गयी
लेकिन उस शारीरिक संभोग से सुखद आनंद की प्राप्ति ने आयशा के सारे दर्दों को मिटा दिया।
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वासना की भूख मिटने के बाद दोनों अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर अपने बर्थ पर आ बैठे।
आकाश ने वायदा किया,
”मैं तुमसे विवाह जरूर करूंगा।“
विश्वास दिलाने के बाद दोनों सीट पर किसी तरह एक चादर में सो गये।
सुबह होते ही दोनों जग गये,
नित्य-क्रिया से निपट कर सुबह का नाश्ता किया
और फिर गपशप में लगे रहे।
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इस तरह चार बजे के करीब गाड़ी दिल्ली रेलवे-स्टेशन पर जा लगी।
आकाश और रजनी के पास कोई खास सामान नहीं था।
सामान के नाम पर आकाश के पास एक छोटा ब्रीफकेस था
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और रजनी के पास एक बैग।
दोनों बाहर होटल में कमरा लेकर रातभर वहां ठहरे।
अब दोनों लोगों की वासना की आंधी और तेज हो गयी थी।
पूरी रात दोनों ने वासना रूपी आग को शांत किया।
दोनों ही डबल-बेड पर आलिंगनावस्था में चैन की नींद सो गये।
सुबह उठकर नित्य-क्रिया के बाद होटल से एक रिक्शे पर बैठकर
आकाश अपने घर ले जाने के बहाने एक कोठे पर ले गया और बोला,
”यह हमार घर है अभी हमारा पूरा परिवार गांव गया हुआ है।
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फिर किसी शुभ दिन देखकर वैवाहिक सूत्र में बंध जायेंगे।
तुम यहीं आराम करो, मैं एक पार्टी से पेमेंट लेकर अभी एक घंटे में आ रहा हूं।“
आकाश ने अपना ब्रीफकेस लिया और वहां से चला गया।
रजनी काफी समय तक इंतजार करती रही परन्तु आकाश वापस नहीं लौटा।
तब उसकी बेचैनी बढ़ गयी रात के समय जहीरा बाई के साथ एक अधेड़ व्यक्ति रजनी के कमरे में आया।
जहीरा बाई बोली, ”इस कोठे की रानी तेरा साजन अब यहां कभी लौटकर नहीं आयेगा।
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वह तुझे 10 हजार रूपये में बेचकर चला गया है।
आज की पूरी रात तेरी वासना की हवस को ये पूरा करेंगे।
अब तुम यहीं रहोगी और ग्राहकों को खुश करोगी।“
यह सुनकर रजनी अपने कर्मों को दुत्कारने लगी
और फूट-फूट कर रोने लगी।
जबरदस्ती उस व्यक्ति ने पूरी रात उसके शरीर से वासना का खेल खेला।
रजनी रोती-बिलखती रही परन्तु वहां कोई सुनने वाला नहीं था।
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इस तरह इसके साथ लगातार एक हफ्ते तक वासना का खेल खेला जाता रहा।
अब तो रजनी के लिये रोज ग्राहक आते
और ग्राहकों को अपने शरीर से रस पिलाकर खुश करना एक आम बात हो गयी।
वह प्यार को कलंक मानने लगी
तथा बेबसी में वह वहीं अपने तन को बेचकर अपने शेष बचे जीवन को गुजारने के लिये दृढ़ संकल्पित हो गई,
लेकिन आज तक उसे अपने चेहरे पर पुनः खुशी की झलक नहीं पाई।
उसका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन ढलता गया।
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वहीं दूसरी तरफ आकाश के लिये लड़कियों के तन से खेलना आम बात थी।
वह उन लड़कियों से एक बार देह रस चूस लेने के बाद उन्हें भूल जाता था।
उसका एक ही वसूल था ‘रात गई सो बात गई’।
इसीलिये उसे अपने वो वादे,
जो उसने मधू और रजनी जैसी लड़कियों से किये थेे,
उन वायदों की याद उसे फिर भी नहीं आई।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।
अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।
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