ये हाॅट हिन्दी कहानी है sexy biwi मुस्कान की जो बला की खूबसूरत तो थी ही, साथ ही सेक्स की भूखी भी थी… जरूर पढ़ें
खूबसूरत और हसीन होने के साथ-साथ मुस्कान (sexy biwi) दिलफेंक भी थी वरना अभी उसकी उम्र ही क्या थी,
महज 15 साल भला ये भी कोई उम्र होती है बहकने की?
मगर मुस्कान के कदम डगमगाने लगे थे वह वक्त से पहले ही स्वंय को जवान समझने लगी थी।
उपर से कूदरत ने कुछ यूं उसके बदन की भरपाई की थी,
कि 15 वर्ष की किशोरावस्था में ही वह 19-20 वर्षीय की युवती नज़र आने लगी थी।
लिहाजा गांव के लड़कों ने उसके इर्द-गिर्द मंडराना शुरू कर दिया था
और मुस्कान ने भी नाज-नखरे और अदायें बिखेरनी शुरू कर दी।
खासतौर पर उस वक्त वह जरूर इठलाती थी,
जब कोई युवक हजम कर जाने वाली निगाहों से उसके शरीर को टटोलता प्रतीत होता था।
मां-बाप उसके इस रवैये से तो अन्जान थे
मगर उसके पहाड़ जैसे शरीर को देख-देखकर उनकी चिंता बढ़ती ही जा रही थी।
जल्दी ही उन्होंने भी मुस्कान को शादी के लायक मान लिया और उसके लिए वर की तलाश शुरू कर दी।
मां-बाप रिश्ता तलाशते रहे और बेटी गांव के लड़कों के साथ दोस्ती गांठती रही।
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इसी तरह साल दर साल गुजरते चले गये।
गांव के मनचले मुस्कान को अपने जाल में फंसाने के लिए उतावले रहने लगे,
उसकी खूबसूरत देहयष्टि हर किसी की निगाहों की किरकिरी बनी हुई थी,
हर कोई उसे पा लेने को उतावला था।
मुस्कान यह भी खूब समझती थी, कि इन भंवरों का मंडराना तब तक ही कायम रहता है,
जब तक ये कली का रस नहीं चूस लेते, इसलिए वह किसी को ज्यादा भाव नहीं देती थी।
मगर जहां चारों तरफ गिद्ध अपनी पैनी दृष्टि जमाये बैठे हों, वहां मांस कब तक सुरक्षित रह सकता है,
लिहाजा मुस्कान भी फिसलती चली गई और एक के बाद एक कई युवकों पर उसने अपनी जवानी दिल खोलकर लुटाई।
वक्त यूं ही गुज़रता रहा और एक दिन वह भी आया, जब पवन के साथ मुस्कान की शादी कर दी गई।
मुस्कान जब ब्याह कर, ससुराल पहुंची तो स्वयं ही अपने भाग्य से ईष्र्या करने लगी थी।
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कुछ दिन ठीक-ठाक बीता, पर जाने कैसे पवन को शराब की लत लग गई।
जितना वह शराब के करीब जाता रहा, पत्नी से उतना ही दूर होता जा रहा था।
कभी-कभी मुस्कान को हैरानी भी होती कि उसके पति को आखिर क्या हो गया, जो यूं शराब में जकड़ता जा रहा है।
उपर से परिवार की आय का कोई विशेष स्रोत नहीं था और पवन दिन-रात नशे में धुत्त रहने लगा,
तो घर में फांकों की नौबत तो आई ही साथ-साथ मुस्कान की शारीरिक जरूरतें भी उसे परेशान करने लगीं।
क्योंकि अब उसका पति इस काबिल नहीं रह गया था कि पहले की तरह उसके बदन का कचूम्बर निकाल दे।
जिस्मानी जरुरतों एवं पैसे के अभाव में तड़पती मुस्कान ने घर के बाहर निगाह दौड़ाना शुरु कर दिया।
जल्दी ही पड़ोसी रतन से उसकी अच्छी पटने लगी।
फिर तो मुस्कान ने वो लटके-झटके दिखाए, कि रतन उसका गुलाम होकर रह गया
वह मुस्कान पर रुपयों की बरसात करता और मुस्कान उसके आगे अपना खूबसूरत तराशा हुआ
जिस्म परोस कर ना सिर्फ अपनी यौनाकांक्षाओं की पूर्ति करती, बल्कि घर की आर्थिक जरुरतों को भी पूरा करने लगी।
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एक बार जब मुस्कान घर में अकेली थी और अपने प्रेमी रतन के साथ यौन आनंद ले रही थी,
तब एकाएक रतन ने पूछा, ”मुस्कान मेरी जान एक बात बताओ, तुम्हारे पति को हमारे संबंधों की भनक है
मगर फिर भी वह चुप्पी साधे बैठता है। क्या वाकई में वह इतना भोला भगत है?“
”अरे काहे भोला भगत।“ बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली मुस्कान, ”कमजोरी जब खुद में ही है,
तो भला मुझे क्या कहेगा नामर्द कहीं का।
मैं काम की देवी हूं, तो वह मुरझायी हुई डाली है।
जानता है कि उससे मेरी प्यास नहीं बुझने वाली तो क्या कहेगा।
फिर में उसे कमा के भी तो रही हूं।“
”ये सही है मेरी जान।“
मुस्कान के यौवन कलशों को मसलते हुए बोला रतन, ”जब मियां राजी, तो क्यों न मारे बाहर वाला बाजी।“
”बाजी अभी मारी कहां है राजा।“
कामुक स्वर में बोली मुस्कान,
”पहले मेरी ‘बाजी’ तो मार लो, ताकि मैं हार कर भी जीत जाऊं।“
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”तुम्हारी ये ही बातें और अदा मुझे घायल कर जाती हैं मेरी जानेमन।“
बुरी तरह उसके होंठों चूमते हुए बोला रतन,
”बाजी’ मारने के लिए तो कब से मेरा ‘पहरेदार’ तरसा जा रहा है।“
”तो जल्दी मारो न ‘बाजी’ और हरा दो मुझे प्यार के खेल में।“
मुस्कान भी बेकरार होती हुई बोली, ”अब और न तरसाओ।“
”तो जल्दी से दिखाओ रास्ता मेरे ‘पहरेदार’ को अपनी ‘पनाह’ का,
जहां मेरा पहरेदार ‘बाजी’ मारेगा वो भी जमके।“
”जमके और पूरे दमसे बाजी मारना जानूं।“
कहकर मुस्कान ने अपनी पनाह खोल दी,
जहां रतन का ‘पहरेदार’ बाजी मारने के लिए प्रवेश करेगा गया।
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‘पहरेदार’ के प्रवेश होते ही, मुस्कान कसमसा उठी
और अपने ऊपर झुके रतन के कंधों को झकझोरते हुए बोली,
”ओह…रतन, फाड़ डाली ‘किताब’।“
”अभी तो ‘किताब’ को छुआ भर है जानेबहार।“
रतन भी उसी लहजे में बोला।
”आह…उई…उफ..।“ दर्द बिलबिलाती हुई बोली मुस्कान,
”बेरहमी से मेरी ‘किताब’ के पन्ने न पलटो रतन।
जरा प्यार से मेरी ‘किताब’ को पढ़ो।
यह ‘किताब’ कहीं नहीं जा रही। तुम्हारी की पनाहों में है।“
”तुम वाकई बहुत नाजुक हो जानेमन।“
रतन अपनी ही रफ्तार से मुस्कान की कोमल ‘किताब’ के पन्ने पलटता हुआ बोला,
”जाने कितनी बार तुम्हारी ‘किताब’ को अपनी पैनी ‘कलम’ से भर चुका हूं और तुम हो अब भी कोमल ही बनी हुई हो।“
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”सही कह रहे हो तुम रतन।“
अब मुस्कान भी आनंद में डुबते हुए बोली,
”जब भी तुम पहला वार करते हो, हमेशा मुझे दर्द का अनुभव होता है।
कमाल का है तुम्हारा यह बेदर्दी ‘पैन’।
हर बार मेरी ‘किताब’ का कोई न कोई पन्ना फाड़ देता है।“
”अरे यह तो आज भी पन्ने फाड़ने को मरा जा रहा है।“
रतन मुस्कान के गुलाबी अधरों को चूमते हुए बोला, ”अब तुम शांत लेटी रहो और देखो मेरा जलवा।“
फिर मुस्कान और रतन ऐसे एक-दूसरे में समा गये, जैसे अब कभी एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे।
उन्होंने जमकर वासना की अगन को एक-दूसर के तन से शांत कर लिया था।
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रतन अब मुस्कान की एक तरह से जरूरत बन गया था।
मुस्कान के घर की खाने-पीने की जरुरतों का इंतजाम भी रतन ही करता था।
पवन पत्नी के इस रवैये से ज्यादा दिनों तक बेखबर नहीं रह सका,
जल्दी ही उसे पता लग गया कि मुस्कान अपने यार के साथ रंगरेलियां मनाती फिरती है,
मगर पवन ने बजाय एतराज जताने के चुप्पी साध कर मानों मुस्कान को खुली छूट दे दी।
फिर क्या था, मुस्कान खुलकर जिस्म का खेल खेलने लगी,
उसने कुछ और लोगों से भी मधुर संबंध बना लिए और शारीरिक तृप्ति के बदले उनसे रुपए लेने लगी।
धीरे-धीरे वह इस खेल में रमती चली गई और खुलकर वेश्यावृत्ति करने लगी।
साथ-ही-साथ वह शराब बेचने का धंधा भी करने लगी।
पवन ने भले ही पत्नी की तरफ से आंखें मूंद ली थीं, मगर गांव के लोग भला इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते थे?
लिहाजा कुछ लोगों ने यह बात पवन के कानों में डाल दी,
मगर वे लोग यह नहीं जानते थे कि यह सब उसकी शह पर ही चल रहा है।
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लिहाजा बात आई-गई हो गई और मुस्कान के पास नए-नए लोगों का आना-जाना जारी रहा।
आखिरकार एक दिन बिरादरी वालों के चलते पवन ने मुस्कान को घर से निकाल दिया।
इसी दौरान मुस्कान अब्दुल के सम्पर्क में आई और दोनों में जल्दी ही गहरी पटनी व बनने लगी।
हालंाकि अब्दुल का मीनू नाम की एक युवती से मधुर संबंध था,
बावजूद उसके वह मुस्कान पर मर-मिटा, दोनों के बीच संबंध स्थापित हो गये।
पति का घर छोड़ने के बाद भी मुस्कान का धंधा जारी रहा।
वह नित्य नये मर्दों के सम्पर्क में आती रही।
पैसा उसके लिए कोई समस्या नहीं थी,
मगर मर्द के अभाव में औरत को लोग मुफ्त का माल समझ कर, हज़म करने की फिराक में लगे रहते हैं।
हालंाकि मुस्कान खेली-खाई औरत थी,
मगर पति द्वारा घर से निकले जाने के बाद उसे आए दिन मुसीबतों से दो-चार होना पड़ता था।
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पवन ने पत्नी को घर से निकाल तो दिया था मगर अब ना सिर्फ उसे मुस्कान की याद सताती थी,
बल्कि आर्थिक परेशानियों से भी दो-चार होना पड़ रहा था,
ऐसे में जब एक दिन मुस्कान उसके पास आई और उसे रुपयों का लालच दिया,
तो पवन ने पुनः उसे घर में रख लिया।
मुस्कान का धंधा पुनः पति के घर से ही शुरू हो चला था
तथा अब्दुल यहां भी मुस्कान से मिलने आने लगा।
वह अक्सर अपनी प्रेमिका मीनू को लेकर आता था
और मुस्कान उसे रंग-रलियां मनाने के लिए जगह उपलब्ध कराती थी।
मुस्कान के यहां उसका आना-जाना बढ़ा, तो वह गांव के लोगों की निगाहों में खटकने लगा।
दरअसल गांव में भी ऐसे बहुत से लोग थे, जो मुस्कान को सिर्फ अपनी बनी देखना चाहते थे।
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वह नहीं जानते थे कि अगर उसे किसी एक का ही होकर रहना होता,
तो वह अपने पति की ही होकर न रहती?
ना कि हर किसी की बांहों मंे उछलती फिरती।
बस इसी तरह मुस्कान ने अप्रत्यक्ष रूप में अपने कई दुश्मन बना लिया थे।
दुश्मन भी ऐसे जो आस-पास के ही थे और घात करने के लिए घात लगाये बैठे थे।
इंतजार था तो सही वक्त का ताकि वे अपनी योजना को अमली-जामा पहना सके।
जल्दी ही उन्हें ये मौका हासिल भी हो गया।
एक दिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनू को मुस्कान के घर मिलने को कहा।
उस दिन पवन को किसी रिश्तेदारी में जाना था, यह खबर उसे मुस्कान पहले ही दे चुकी थी,
इसलिए उसने मीनू को निश्चिंत कर दिया कि वहां कोई अन्य मर्द नहीं होगा।
तब मीनू ने पहुंचने का वादा भी कर लिया।
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निश्चित समय पर जब वह पहुंचा उस समय मुस्कान के घर का दरवाजा बंद था।
दस्तक देने के कुछ क्षण बाद दरवाजा खुला और चैखट पर मुस्कान प्रकट हुई।
”क्या बात है राजा!“
वह बडी़ अदा से बोली,
”आज तो खूब बन संवर कर आये हो,
लगता है किसी से मिलने का वादा कर रखा है?“
”ठीक समझी, अब भीतर तो आने दो।“
”अरे आओ ना, तुम्हें रोका किसने है?“
कहकर मुस्कान ने उसे रास्ता दे दिया।
अब्दुल दाखिल हुआ तो मुस्कान दरवाजे की कुंडी लगाते हुई बोली, ”चाय पीओगे?“
”तुम पिलाओ तो ज़हर भी पीने को तैयार हूं।“
”जहर पियें तुम्हारे दुश्मन, तुम तो चाय पिओ मुस्कान के हाथ की… अभी लेकर आती हूं।“
कहकर वह भीतर चली गई और थोड़ी देर बाद वह चाय के दो प्यालों के साथ अब्दुल के पास वापस लौटी।
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दोनों चाय पीने लगे।
कुछ देर की शान्ति के बाद मुस्कान ने पूछा, ”मीनू आने वाली है क्या…?“
”हा।ं“ अब्दुल हौले से गर्दन हिलाकर बोला।
”कब तक आयेगी?“
”देखो कब आती है, वैसे अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था।“
कहते हुए उसने ने मुस्कान की कलाई थाम ली,
”तुम भी तो आज रोज से ज्यादा खूबसूरत दिख रही हो।“
”क्यों मसका लगा रहे हो?“
”नहीं सच कह रहा हूं… सोचता हूं क्यों न मीनू के आने से पहले एक बार तुम्हारे साथ…’’
अब्दुल ने मुस्कान को बाहों में भर लिया।
वह भी तड़पकर अब्दुल से लिपट गई और मदहोश होती हुई बोली,
”इस बदन की अगन को शांत करो दो मेरे राजा!
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बहुत झुलसाती है ये अगन बदन की।“
फिर दोनों के बीच चुम्बनों का आदान-प्रदान शुरू हो गया,
देखते ही देखते दोनांे की संासें भारी होने लगी,
कुछ देर खड़े-खड़े लिपटा-झपटी करने के बाद,
अब्दुल ने मुस्कान को पलंग पर लिटा दिया
और दोनांे अर्द्धनग्नावस्था में एक-दूसरे को अपनी बाहों में भींचते चले गए।
कमरा मुस्कान की सिसकारियों और अब्दुल की गर्म सांसों से दहकने लगा…
”अब्दुल, आज वाकई बहुत प्यास लगी है।
आज मेरी प्यास इस कदर बुझा दो,
कि तुम्हारे प्रेम की बारिश से तर-बतर हो जाऊं।“
कहकर वह बेतहाशा अब्दुल से लिपट गई।
”जानता हूं मेरी जान।“
अब्दुल भी मुस्कान के गुलाबी होंठों को चूमते हुए बोला, ”बखूबी जानता हूं,
कितना आग समेटे हुए हो तुम अपनी देह में।
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तभी तो जब भी तुम्हें छूता हूं, तो मैं भी कामाग्नि में झुलसने लगता हूं।
आज तुम्हें ऐसे पीसूंगा जैसे सिलबट्टे में चटनी पिसती है।“
”तो बना डालो ने मेरी देह की चटनी अपने सिलबट्टे से।“
मुस्कान भी तड़प कर बोली, ”पीस डालो मेरा एक-एक अंग।“
फिर क्या था,
मुस्कान के कहते ही जोरदार तरीके से अब्दुल, मुस्कान की देह की चटनी बनाने लगा…
चटनी इतनी मसालेदार थी, कि मुस्कान के मुख से सीत्कार निकलने लगी थी…
”क्या चटनी पीस रहे हो राजा।
उस मीनू की ही चटनी बनाते रहे और अपनी मुस्कान को भूल गये।“
अपने ऊपर झुके अब्दुल के कान के फास मादक स्वर में फुसफुसाते हुए बोली मुस्कान,
”ओह…आह… मेरे अब्दुल… हां…ओह..स… बिल्कुल ऐसे ही… रूकना मत तुम्हें कसम है
अपनी मुस्कान की… बस चटनी बनने ही वाली है।“
अब्दुल भी मुस्कान के कहेनुसार बिना रूके उसकी देह की चटनी बनाता रहा।
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फिर एकाएक बुरी तरह हांफती व अब्दुल से लिपटती हुई बोली मुस्कान,
”बस…मेरे सनम बस करो… तुम्हारी मुस्कान अब शीलत पड़ गई है।
मैं तृप्त हो चुकी हंू।
तुमने बड़े ही लाजवाब तरीके से अपने सिलबट्टे पर मेरी देह की चटनी पीसी है।“
मुस्कान मुस्कराते हुए बोली, ”अब अपने सिलबट्टे को साफ कर लो चटनी के निशान रह गये हैं…
तुम्हारा सिलबट्टा मीनू के काम भी आयेगी अभी।“
अभी दोनों बिस्तर से उठ भी नहीं पाए थे, कि दरवाजे पर दस्तक हुई।
”लो आ गई मीनू भी।“
मुस्कान बोली, ”बड़ी लंबी उम्र है इसकी।“
फिर अब्दुल से बोली, ”जाओ दरवाजा खोल दो।“
फिर अब्दुल दरवाजा खोलने चल दिया, जबकि मुस्कान अपने कपड़े ठीक करने लगी।
दरवाजे तक पहंुच कर, अब्दुल ने यह जाने बिना दरवाजा खोल दिया
कि दूसरी तरफ कौन था?
बस यही उसके जीवन की सबसे भयानक और आखिरी भूल साबित हुई।
दरवाजा खुलते ही कुछ लोग धड़धड़ाते हुए भीतर घुस आए।
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मुस्कान ने देखा कि गांव के कुछ लोग हैं,
मुस्कान को उनके इरादे ठीक नहीं दिखाई दिए।
अब्दुल प्रश्न करती निगाहों से मुस्कान की तरफ देखता रहा।
वे कुछ सोच-समझ पाते कि इससे पहले मुस्कान के घर में घुसी भीड़ ने दोनों को मौत की नींद सुला दिया तथा फरार हो गए।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है
अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।